अमेरिका की सत्ता पर काबिज होने के कुछ ही दिन बाद राष्ट्रपति जो बाइडन को एक बड़े अंतरराष्ट्रीय संकट से दो-चार होना पड़ रहा है। ये संकट म्यांमार में लोकतांत्रिक सरकार का सेना द्वारा तख्ता पलट करने के बाद खड़ा हुआ है। इसके बाद बाइडन न सिर्फ म्यांमार को मिलने वाली मदद को रोक सकते हैं बल्कि वहां के जनरल समेत अन्य लोगों प्रतिबंध भी लगा सकते हैं। इसके अलावा वो म्यांमार की उन कंपनियों पर भी दबाव बना सकते हैं जो लोकतंत्र बहाली के पक्ष में हैं। अब ये देखना काफी दिलचस्प होगा कि बाइडन इसको लेकर क्या रुख अपनाते हैं और अपने सहयोगियों के साथ मिलकर क्या कदम उठाते हैं। बाइडन ने तख्तापलट करने वालों को लोकतंत्र बहाली करने या फिर प्रतिबंधों का सामना करने तक की धमकी दे दी है। उन्होंने ये भी कहा है कि वो मौजूदा समय में वही कदम उठा सकते हैं जो करीब एक दशक पहले बराक ओबामा प्रशासन के समय उठाए गए थे। उस वक्त उठाए गए उन कदमों की ही वजह से सेना को हिरासत में लिए गए नेताओं को रिहा करना पड़ा था। ।
आपको बता दें कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने म्यांमार के चार जनरलों के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए उनपर प्रतिबंध लगा दिया था। ये प्रतिबंध वर्ष 2017 में रोहिंग्याओं पर हुए जुल्म और 7 लाख रोहिंग्याओं को उनके घरों से दूर करने में इन अधिकारियों की प्रमुख भूमिका के चलते लगाया गया था। यूएस ट्रेजरी के पूर्व सीनियर सेंक्शन ऑफिसर पीटर क्यूसिक के मुताबिक मौजूदा परिस्थिति में बाइडन म्यांमार के खिलाफ नए प्रतिबंधों के लिए एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पर साइन कर सकते हैं। उनका कहना है कि ये सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि वो इस घटनाक्रम को किस तरह से देखते हैं और विशेषज्ञ उन्हें क्या करने की सलाह देते हैं। वो इसके लिए इंटरनेशनल इमरजेंसी एकनॉमिक पावर एक्ट के तहत एग्जीक्यूटिव ऑर्डर भी पास कर सकते हैं। हालांकि इसका वो उद्योगपति विरोध कर सकते हैं जिनका म्यांमार से व्यापारिक समझौता है और जो दोनों देशों के बीच व्यापार को बनाए रखने के पक्षधर हैं।
पूर्व अधिकारी का मानना है कि अमेरिका म्यांमार को सीधा संदेश दे सकता है कि तख्तापलट की ये कार्रवाई पूरी तरह से गलत है। इनका ये भी कहना है कि बाइडन के पास म्यांमार के जनरल के अधिकारों को प्रतिबंधित करने से उन्हें केवल सीमित लाभ ही मिल सकता है। इन लोगों के खिलाफ पहले लगाए प्रतिबंधों पर भी सवाल जवाब होता रहा है।
कुछ इन्हें हटाने के पक्षधर भी हैं तो कुछ इन्हें बढ़ाने में ही भलाई समझते हैं। ऐसा मानने वालों में ओबामा प्रशासन मं पूर्वी एशिया मामलों के अमेरिकी राजनयिक डेनियल रसेल का नाम शामिल है। उनका मानना है कि सहयोगियों से बातचीत के जरिए इसका समाधान किया जाना चाहिए और देश में फिर लोकतंत्र बहाल होना चाहिए। इसके अलावा । बाइडन को म्यांमार की उन कंपनियों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए जिन पर सेना का नियंत्रण है। इनमें म्यांमार इकनॉमिक होल्डिंग लिमिटेड और म्यांमार इकनॉमिक कॉर्प शामिल है। ये दोनों कंपनियां म्यांमार के विभिन्न क्षेत्रों में काम करती हैं, जैसे-बैंक, टेलिकॉम, कपड़ा उद्योग, जेम्स और कॉपर आदि।
यूएस राजदूत कैली करी के मुताबिक वर्ष 2018 मे रोहिंग्याओं पर सेना द्वारा किए गए जुल्मों को देखते हुए इन कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी की गई थी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। इनका कहना है कि म्यांमार पर मैग्निटस्की एक्ट के तहत म्यांमार पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। इसके तहत उन लोगों की अमेरिका में बनी सपंत्तियों को सीज किया जा सकता है। ऐसा करने के बाद प्रतिबंधित लोगों इन लोगों को अमेरिका में किसी के साथ भी व्यापार करने पर पाबंदी होगी।
इसके अलावा बाइडन जेएडीई एक्ट के तहत भी म्यांमार पर प्रतिबंध लगा सकते हैं जिस पर वर्ष 2016 में बराक ओबामा प्रशासन के दौरान कुछ ढील दी गई थी। इसके तहत वहां की सैन्य सरकार जिसको जुंटा कहा जाता है, को टार्गेट किया जा सकता है। अमेरिका म्यांमार के अधिकारियों और उनके परिवार के सदस्यों पर ट्रेवल बैन लगा सकता है। गौरतलब है कि राष्ट्रपति बाइडन और उनके विदेश मंत्री ने म्यांमार में हुए तख्तापलट की कड़ी निंदा की है। सैन्य सरकार की वजह से म्यांमार को मिलने वाली अरबों डॉलर की मदद को भी रोका जा सकता है। हालांकि अमेरिका का कहना है कि वो कोई कदम उठाने से पहले उस पर अच्छे से विचार कर लेना चाहता है।