बच्चों के साथ हुई रहीं दुष्कर्म की वारदातें हर किसी के लिए चिंता का सबब हैं। अफसोस की बात यह है कि 2014 के मुकाबले छोटे बच्चों के साथ होने वाली घटनाओं में चार गुणा से अधिक की तेजी आई है। नेशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) की रिपोर्ट इस बात की गवाही दे रही है। इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2008 में जहां पास्को के अंतर्गत 8904 मामले दर्ज किए गए थे। इनमें करीब 1172 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन पुलिस महज 100 को ही सजा दिलवा पाई। इसके अलावा 2016 की यदि बात करें तो 36022 मामले पास्को के तहत दर्ज किए गए। इनमें करीब 42196 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया और 3226 को पुलिस सजा दिलवा पाई।
2017 में आई कमी
आंकड़ों को देखकर कहा जा सकता है कि मामले बढ़ने के साथ-साथ पुलिस इनकी गंभीरता को भांपते हुए संजीदा तो हुई है लेकिन इंसाफ दिलाने में जरूर पीछे रह गई। लेकिन इस बात को भी नहीं झुठलाया जा सकता है कि पुलिस की तेजी और जागरुकता की वजह से ही 2017 में पास्को में दर्ज मामलों में कुछ कमी आई। इस दौरान यह 33000 थे। इस तरह के मामलों में सबसे अधिक 6,782 उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए। इसके अलावा महाराष्ट्र में 4354 और मध्यप्रदेश में 4118 मामले दर्ज किए गए। आंकड़ों से यह भी पता चल रहा है कि इन मामलों की सुनवाई में हो रही देरी भी कहीं न कहीं इनकी बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार है। इसके अलावा इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि कुछ मामले ऐसे भी जरूर होंगे जो रिकॉर्ड ही नहीं हुए हैं। ऐसे मामले भी इस तरह की घटनाओं में बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार होते हैं। इसको विडंबना ही कहा जाएगा कि बच्चों के साथ होने वाली दुष्कर्म की घटनाओं में ज्यादातर परिवार का ही कोई सदस्य या फिर करीबी या पीडि़त परिवार का जानकार ही शामिल रहा है।
आपको यहां पर ये भी बता दें कि कुछ राज्यों में इस तरह के मामलों पर गंभीरता बरतते हुए दोषी को फांसी की सजा का प्रावधान किया है। इनमें राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा और उत्तर प्रदेश शामिल हैं। इतना ही नहीं इसी वर्ष अप्रेल में 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार के मामलों में दोषी ठहराए गए व्यक्तियों को मृत्युदंड सहित सख्त सजा देने संबंधी अध्यादेश राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंजूरी दे दी थी।
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