पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत मामले में भाजपा, और कांग्रेस के बीच वार पर पलटवार हो रहा है। कांग्रेस इस मामले में भाजपा की उत्तराखंड सरकार को जमकर आड़े हाथों ले रही है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा और पूर्व नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह ने एसएलपी को लेकर भाजपा पर गंभीर सवाल उठाए, तो दूसरी ओर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने सामान्य वैधानिक प्रक्रिया करार दिया है।
पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट में दायर सरकारी याचिका वापस लिए जाने को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने सामान्य वैधानिक प्रक्रिया करार दिया है। भट्ट के मुताबिक त्रिवेंद खुद अपना केस तेजी से निपटाने के पक्ष में हैं। सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट से एसएलएपी वापस लिए जाने के सवाल पर प्रतिक्रिया देते हुए भट्ट ने कहा कि उक्त याचिका तब दायर की थी गई थी जब त्रिवेंद्र सिंह खुद सीएम थे। अब वो सीएम नहीं है, इस तरह एक निजी
व्यक्ति की लड़ाई सरकार बहुत लंबे समय तक नहीं लड़ सकती है। बकौल भट्ट शायद इसी कानूनी प्रावधानों के तहत सरकार ने इस केस में अब खुद पार्टी नहीं बनने का निर्णय लिया होगा। वैसे भी इस केस में खुद त्रिवेंद्र सिंह रावत और हरेंद्र रावत सुप्रीम कोर्ट में गए ही हैं। भट्ट के मुताबिक त्रिवेंद्र सिंह रावत खुद केस तेजी से निपटाने की मांग कोर्ट के सामने कर चुके हैं।
सरकार के इस केस से हट जाने के बाद इस प्रक्रिया में तेजी ही आएगी। उन्होंने कहा कि यदि त्रिवेंद्र को इस केस में सरकार से किसी मदद की आवश्यकता होगी तो वो सरकार से कानूनी सहायता की मांग कर सकते हैं। सरकार इस पर जरूर विचार करेगी। इस केस में किसी तरह का विवाद देखना ठीक नहीं होगा।
भाजपा का सत्ता संघर्ष चरम परकांग्रेस
एसएलपी वापसी को कांग्रेस ने भी मुद्दा बना लिया। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा और पूर्व नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह ने एसएलपी को लेकर भाजपा पर गंभीर सवाल उठाए। माहरा ने कहा कि त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भाजपा सरकार के पूर्व सीएम रहे हैं। उनके समर्थन में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की थी।
अब वर्तमान सरकार द्वारा उस एसएलपी को वापस लेने का क्या मतलब है? इसे क्या माना जाए? हकीकत यह है कि भाजपा में सत्ता संघर्ष चरम पर पहुंच गया है। प्रदेश की जनता ने भाजपा को सरकार में इसलिए बिठाया है कि प्रदेश का विकास हो। लेकिन, आज प्रदेश को अराजकता और अपराध की गर्त में धकेल दिया गया है।
प्रीतम ने कहा कि वर्ष 2017 में जब भाजपा सत्ता में आई थी तब भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस और लोकायुक्त बनाने का वादा किया गया था। न तो भ्रष्टाचार ही रुका और न ही लोकायुक्त बना। भाजपा के अपने ही नेता इस वक्त प्रदेश में भ्रष्टाचार के आरोप लगाते नहीं थक रहे। वर्ष 2020 में हाईकोर्ट ने जब गो सेवा आयोग वाले मामले में सीबीआई जांच के आदेश दिए थे तो भला सरकार क्यों डर गई? जितनी सिर फुटव्वल इस वक्त भाजपा में हैं, वो शायद ही कहीं दिखाई दे।