बहुत से लोग इस बात को जानते भी नहीं है. अब अगर आप भी उन्ही में से एक हैं तो आइए हम आपको बताते हैं कि ऐसा क्यों हुआ था. पौराणिक कथा – राजा पाण्डु की दो पत्नियां थीं. एक कुंति और दूसरी माद्री. पाण्डु को शाप था कि वह जब भी अपनी पत्नी कुंति या माद्री के साथ सहवास करेंगे तुरंत ही मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे, इसीलिए कुंति को प्राप्त मंत्र शक्ति के बल पर 3 पुत्र उत्पन्न हुए और वही मंत्र विद्या उन्होंने माद्री को बताई जिसने उनको 2 पुत्र हुए. कुंति ने विवाह पूर्व भी इस मंत्र शक्ति का प्रयोग किया था जिसके चलते कर्ण का जन्म हुआ था. कर्ण को उन्होंने छोड़ दिया था. इस तरह कुंति के 4 पुत्र थे. इसका मतलब पाण्डु के कुल 6 पुत्र थे. पांच पांडवों से से दो नकुल और सहदेव दोनों ही माद्री-अश्विन कुमार के पुत्र थे.
जब नकुल और सहदेव का जन्म हुआ तब आकाशवाणी हुई की, ‘शक्ति और रूप में ये जुड़वा बंधु स्वयं जुड़वा अश्विनों से भी बढ़कर होंगे.’ पाण्डु पत्नी माद्री के जुड़वा पुत्र में से एक सहदेव हैं. इनके भाई का नाम नकुल है. यह भी अपने पिता और भाई की तरह पशुपालन शास्त्र और चिकित्सा में दक्ष थे और अज्ञातवास के समय विराट के यहां इन्होंने भी पशुओं की देखरेख का काम किया था. ये गाय चराने का कार्य भी करते थे. महाभारत युद्ध में सहदेव के अश्व के रथ के अश्व तितर के रंग के थे और उनके रथ पर हंस का ध्वज लहराता था. माना जाता है कि मृत्यु के समय उनकी उम्र 105 वर्ष की थी. सहदेव अच्छे रथ यौद्धा माने जाते हैं.
सहदेव की कुल चार पत्नियां थीं:- द्रौपदी, विजया, भानुमति और जरासंध की कन्या. द्रौपदी से श्रुतकर्मा, विजया से सुहोत्र पुत्र की प्राप्ति हुई. इसके अलावा इके दो पुत्र और थे जिसमें से एक का नाम सोमक था. सहदेव के नाम नाम से तीन ग्रंथ प्राप्त होते हैं- व्याधिसंधविमर्दन, अग्निस्त्रोत, शकुन परीक्षा.
पहले अपना श्राद्ध कर नागा साधु बनते हैं लोग सालों तक करना होता है जप-तप तब जाकर…
त्रिकालदर्शी थे सहदेव – सहदेव ने द्रोणाचार्य से ही धर्म, शास्त्र, चिक्तिसा के अलावा ज्योतिष विद्या सीखी थी. सहदेव भविष्य में होने वाली हर घटना को पहले से ही जान लेते थे. वे जानते थे कि महाभारत होने वाली है और कौन किसको मारेगा और कौन विजयी होगा. लेकिन भगवान कृष्ण ने उसे शाप दिया था कि अगर वह इस बारे में लोगों को बताएगा तो उसकी मृत्य हो जाएगी. त्रिकालदर्शी सहदेव के दुर्योधन गया और उसने युद्ध शुरू करने से पहले उससे सही मुहूर्त के बारे में पूछा. सहदेव यह जानता था कि दुर्योधन उसका सबसे बड़ा शत्रु है फिर भी उसने युद्ध शुरू करने का सही समय बता दिया.
कैसे बने सहदेव त्रिकालदर्शी- सहदेव के धर्मपिता पाण्डु बहुत ही ज्ञानी थे. उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनके पांचों बेटे उनके मृत शरीर को खाएं ताकि उन्होंने जो ज्ञान अर्जित किया है वह उनके पुत्रों में चला जाए! सिर्फ सहदेव ने ही हिम्मत दिखाकर पिता की इच्छा का पालन किया. उन्होंने पिता के मस्तिष्क के तीन हिस्से खाए. पहले टुकड़े को खाते ही सहदेव को इतिहास का ज्ञान हुआ, दूसरे टुकड़े को खाने से वर्तमान का और तीसरे टुकड़े को खाते ही वे भविष्य को देखने लगे. इस तरह वे त्रिकालज्ञ बन गए.