पंजाब में पिछले कई वर्षों से रोक के बावजूद किसान खेतों में पराली को आग के हवाले कर रहे हैं। पंजाब में अक्टूबर से नवंबर तक धान की कटाई चलती है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के अनुसार राज्य में लगभग 30 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती की जाती है, जिससे करीब 210 लाख टन लाख टन पराली पैदा होती है। किसान पकने के बाद फसल का ऊपरी हिस्सा काट लेते हैं। बाकी अवशेष किसान के लिए बेकार होते हैं। धान कटने के बाद किसान खेतों में गेहूं की बिजाई करते हैं, इस कारण उन्हें खेत खाली करने की जल्दी होती है।
ऐसे में ज्यादातर किसान 70 से 80 प्रतिशत पराली को आग के हवाले कर देते हैं। इतने बड़े स्तर पर पराली को खेतों में जलाए जाने से आसमान में गैस चैंबर बन जाता है। इससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा होती हैं। पंजाब पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड लुधियाना के सीनियर एन्वायर्नमेंटल इंजीनियर एके कलसी के अनुसार इससे कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रिक ऑक्साइड जैसी खतरनाक गैसें पैदा होती हैं और यह गैसें जब जहर बनकर आबोहवा में मिलती हैं, तो न सिर्फ पर्यावरण बल्कि इंसानों के साथ साथ पशु, पक्षियों की भी जिंदगी खतरे में पड़ जाती है।
पराली जलाने की वजह से कई बार हालात इस कदर बदतर हो जाते हैं कि कई जिलों में नवंबर से दिसंबर के बीच में एयर क्वालिटी इंडेक्स 500 के खतरनाक स्तर पर भी पहुंच जाता है। एयर क्वालिटी इंडेक्स जब 300 से पार हो जाए और तो यह सेहत के लिए बेहद घातक हो जाता है। प्रदूषण की वजह से हवा की क्वालिटी के लगातार खराब रहने से फेफड़ों का संक्रमण, श्वास रोग, हार्ट से संबंधित गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। खासकर, अस्थमा, कैंसर व हृदय रोगियों के लिए समस्या बढ़ जाती है। बीमारियों की चपेट में आने का सबसे ज्यादा खतरा किसानों को ही रहता है। क्योंकि वह खेतों के आसपास रहते हैं। इस वजह से वह रोजाना गैसों के संपर्क में रहते हैं।
सेटेलाइट से रखी जा रही नजर
पंजाब पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (पीपीसीबी) की ओर से पराली जलाने वाले किसानों पर कड़ी नजर रखी रही है। सेटेलाइट के जरिए रोजाना मॉनीटरिंग हो रही है। पराली जलाने वालों को जुर्माना किया जा रहा है। इसके तहत यदि दो एकड़ से कम खेत में किसान पराली जलाता है, तो उसे 2500 रुपये जुर्माना, दो एकड़ से पांच एकड़ में पराली जलाने वालों को पांच हजार रुपये जुर्माना और पांच एकड़ से अधिक खेतों में पराली जलाने वाले किसान को पंद्रह हजार रुपये का जुर्माना किया जा रहा है। उम्मीद है कि किसान इस बार पराली को आग के हवाले करने से पहले सोचेंगे। क्योंकि सरकार की ओर से बड़ी संख्या में सब्सिडी पर किसानों को पराली प्रबंधन को लेकर मशीनें उपलब्ध करवाई जा रही है। किसानों को जागरूक किया जा रहा है।
अक्टूबर-नवंबर में 30 आरएसपीएम तक बढ़ जाता है प्रदूषण का स्तर
मंडी गोबिंदगढ़ (साल 2016) | |
महीना | आरएसपीएम (प्रति घन मीटर) |
जनवरी | 118 |
फरवरी | 122 |
मार्च | 138 |
अप्रैल | 132 |
मई | 117 |
जून | 112 |
जुलाई | 118 |
अगस्त | 117 |
सितंबर | 122 |
अक्टूबर | 146 |
नवंबर | 154 |
दिसंबर | 113 |
औसत | 126 |
(सबसे प्रदूषित रहता है मंडी गोबिंदगढ़)
ये खतरनाक गैसें निकलती हैं पराली जलाने से
-कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रिक ऑक्साइड। इसके अलावा कार्बन के कण पूरे वायुमंडल में फैल जाते हैं।
गर्भवती महिलाओं पर पड़ता है बुरा असर
एसपीएस अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. विनस बांसल का कहना है कि पराली का धुआं गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत खतरनाक है। यदि कोई गर्भवती महिला बार-बार धुएं के संपर्क में आती है तो उसका प्रभाव भ्रूण वृद्धि पर पड़ता है। शिशु की ग्रोथ पर भी बुरा असर होता है। पूरी ऑक्सीजन न मिलने पर समय से पहले लेबर पेन होने लगती है। इसके अलावा जो गर्भवती महिलाएं अस्थमेटिक हैं, उनके लिए तो यह धुआं जानलेवा साबित होता है। क्योंकि धुएं की वजह से रेस्पेरेटरी डिजीज डेवलप होने लगती है। इससे जच्चा-बच्चा दोनों को खतरा है।
दिल के रोगियों के लिए जानलेवा
मेडिवेज अस्पताल के कार्डियो वस्कुलर साइंसेस के चेयरमैन डॉ. हरिंदर सिंह बेदी का कहना है कि पराली लोगों के फेफड़ों व हार्ट को काफी नुकसान पहुंचाती है। एक हफ्ते तक यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति पराली के धुएं को जाने अनजाने में श्वास के जरिए लेता है, तो इससे फेफड़ों में इंफेक्शन व दमा हो सकता है। कई वर्षों तक लगातार धुएं से प्रभावित होने पर व्यक्ति को फेफड़ों का कैंसर भी हो सकता है। यहीं नहीं, पराली के धुएं में मौजूद खतरनाक गैसों के कण जब सांस के जरिए शरीर में दाखिल होते हैं, तो खून की नाडिय़ों में जम जाते हैं। इससे नाडिय़ां सिकुड़ जाती हैं। खून चिपचिपा हो जाता है। नाड़ी की लाइजिंग डैमेज हो जाती है। ऐसे में हार्ट अटैक की संभावना काफी संभावना रहती है।
खराब हो सकते हैं फेफड़े
आंखों में जलन से फैल सकता है संक्रमण
ओप्थोलॉजी डिपार्टमेंट डीएमसीएच की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रियंका अरोड़ा का कहना है कि इस जहरीले धुएं की वजह से आंखों की कई बीमारियां हो सकती हैं। जैसे आंखों में बहुत ज्यादा जलन, खारिश, भारीपन व लाली बढ़ जाती है। इसके अलावा आंखों में हर वक्त दर्द रहता है। यदि एलर्जी ज्यादा हो जाए, तो आंखों के लिए गंभीर समस्याएं पैदा हो जाती हैं।
कम हो सकती है याददाश्त
डीएमसीएच की डिपार्टमेंट ऑफ न्यूरोलॉजी की एसोसिएशट प्रोफेसर डॉ. मोनिका सिंगला जब पराली जलाई जाती है, तो उसमें से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड गैसें पैदा होती हैं। यदि इन गैसों के संपर्क में कोई व्यक्ति ज्यादा समय तक रहे, तो इससे ब्रेन डैमेज हो सकता है। याददाश्त बहुत कम हो सकती है, जबकि कम समय में धुएं के संपर्क में रहने पर घुटन जैसी समस्या की वजह से सिर भारी हो जाता है, घबराहट होती है। सिर में दर्द की शिकायत होने लगती है।
उपाय बहुत हैं… पराली को मल्चिंग में इस्तेमाल कर फसल को खरपतवार से बचाएं
पीएयू के विशेषज्ञ पराली को मल्चिंग के तौर पर इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं। मल्चिंग क्यारियों में बोई जाने वाली सब्जियां हल्दी, प्याज, लहसुन, मिर्च, चुकंदर, शलगम, बैंगन, भिंडी में करते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार बहुत से किसान इन सब्जियों के बीज बोने के बाद पराली को मर्चन (पराली को कुतर कर) ढक देते हैं। जिससे पौधों को दो लाभ मिलते हैं, एक तो पराली गल कर इन पौधों को प्राकृतिक खाद उपलब्ध करवाती है, दूसरा जितने हिस्से को पराली से ढका जाता है, वहां खरपतवार (नदीन) नहीं उगते। जमीन में नमी भी लंबे समय तक बनी रहती है। इससे गर्मियों में खेतों का तापमान भी स्थिर बना रहता है।
ये बने मिसाल… छह लाख का पैकेज छोड़ गांव को पराली जलाने से मुक्त बनाया
पटियाला के भादसों ब्लॉक का गांव कल्लरमाजरी एक ऐसा गांव है, जहां किसान कुदरत से बहुत प्यार करते हैं और फसल काटने के बाद पराली नहीं जलाते। लगभग 550 एकड़ के इस गांव के करीब 65 किसान हैप्पी सीडिंग करते हैं। ये सब गांव कल्लरमाजरी के ही किसान बीर दलविंदर के प्रयास से संभव हुआ है। बीर दलविंदर ने अकेले अपने गांव के सभी किसानों को हैप्पी सीडिंग के बारे में जानकारी दी और गांव को पराली जलाने से मुक्त कर अवॉर्ड दिलाया।
बीर दलविंदर सॉफवेयर इंजीनियर हैं, लेकिन उन्हें खेती में दिलचस्पी थी, इसलिए वे नोएडा में सवा 6 लाख का पैकेज छोड़ वापस गांव आकर खेती करने लगे। आज से करीब 4 साल पहले उन्होंने पहली बार हैप्पी सीडिंग करके लोगों को इसके बारे में जागरूक करना शुरू किया था। इसके अलावा वे ऑर्गेनिक खेती भी करते हैं। उन्हें इस क्षेत्र में पंजाब सरकार और पंजाब एग्रीकलचर यूनिवर्सिटी से काफी अवॉर्ड भी मिले हैं।
एनजीटी ने सौंपा जिम्मा, तो दलविंदर ने पेश की मिसाल
बीर दलविंदर के प्रयासों से प्रेरित होकर पिछले एक साल से कृषि विभाग भी मदद को आगे आया। विभाग को एनजीटी ने स्टबल बर्निंग पर तलब कर किसी एक गांव को बर्निंग फ्री बनाने का टास्क दिया था। खेतीबाड़ी विभाग को इस तरह के गांव का पता लगाने को कहा गया, जहां कोई किसान पहले से ही इस तरह से खेती करना चाहता हो या फिर पहले से कर रहा हो।
पता चला कि गांव कल्लरमाजरी में बीर दलविंदर सिंह पहले से ही हैप्पी सीडिंग कर रहे थे। सरकार ने उनकी सहायता से गांव के बाकी किसानों से बातचीत की और उन्हें हैप्पी सीडिंग के लिए प्रोत्साहित किया। गांव के किसान मान गए और खेती शुरू कर दी। इसके बाद गांव कल्लर माजरी पंजाब का पहला ऐसा गांव बन गया, जहां कोई किसान पराली नहीं जलाता। इसके लिए पिछले साल गांव को स्टेट अवॉर्ड से सम्मानित भी किया गया।
पराली की गांठें बनाकर बेचे रहे किसान
यहां किसान पराली को जलाने के बजाय उसकी गांठें बनाकर बेच रहे हैं। बाकी बची पराली में सीधी बिजाई की जा रही है। हैप्पी सीडिंग से फसल के झाड़ में कोई फर्क नहीं पड़ता, बल्कि जमीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है। इससे जमीन में कार्बन व नमी की मात्रा बढ़ती है। जमीन का तापमान भी कम रहता है। बीर दलविंदर सिंह कहते हैं कि सरकार की ओर से किसानों को फसल का कल्टीवेशन कॉस्ट तो मिलती है, लेकिन रेसेड्यू मैनेजमेंट का कहीं कुछ नहीं मिलता। इसलिए किसान खर्च से बचने के लिए पराली जला देते हैं। इसलिए रेसेड्यू मैनेजमेंट के लिए किसानों को 100 रुपये प्रति क्विंटल बोनस दिया जाना चाहिए।
पीएयू ने किया सम्मानित
20 सितंबर को पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने बीर दलविंदर को सरदार दलीप सिंह धालीवाल पुरस्कार से सम्मानित किया। ये अवार्ड दलविंदर को रवायती फसलों की जगह तकनीक युक्त खेती के लिए मिला है। पीएयू ने ये भी जिक्र किया कि वीर दलविंदर हैप्पी सीडर के जरिए बिना पराली के अवशेश जलाए गेहूं की बिजाई करते हैं और वहीं इससे नुक्सान की बजाय फायदा अर्जित करते हैं। इससे दूसरे किसानों को भी इस ओर ध्यान देने का रुझान पैदा होता है। इसके अलावा हर खेतीबाड़ी सिखलाई और जागरूकता कैंप में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
कृषि विभाग से मिलती है सहायता
- फसल काटने के बाद अवशेष के लिए बेलिंग और कारपोरेशन
- सुपर एसएमएस यंत्र कंबाइन के पीछे लगता है। 500 रुपये प्रति एकड़ खर्च आता है।
- तेल का खर्च 800 रुपये प्रति एकड़
- हैप्पी सीडर का पूरा किराया
- फॉर वन टाइम यूसेज के लिए मशीनरी।
अपील… पशुओं को आहार के रूप में दें पराली
गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी के वीसी डॉ. अमरजीत सिंह नंदा का कहना है कि किसान समय बचाने के लिए आसान तरीका अपनाते हैं, जबकि पशु पालन के क्षेत्र में पराली की खपत के कई ऑप्शन मौजूद हैं। यूनिवर्सिटी के शोध में साबित हो चुका है कि पराली का इस्तेमाल पशुओं के आहार के तौर पर किया जा सकता है। क्योंकि गेहूं की तूड़ी की तरह ही धान की पराली की न्यूट्रेट वैल्यू बढिय़ा है। पराली को कैमिकल के साथ प्रोसेस करके पशुओं को दिया जा सकता है। तरीका बहुत ही साधारण है।
पराली को यूरिया के साथ प्रोसेस किया जा सकता है। फंगल तकनीक से भी इसे पशुओं के लिए खाने लायक बनाया जा सकता है। पराली को सब्जियों, फलों व वेस्ट फूड से मिलाकर अचार के रूप में तबदील किया जा सकता है। किसानों से अपील है कि वे पराली को आग न लगाएं। पराली प्रबंधन की तकनीक की जानकारी लेकर इसे संभाले।