कुलदीप नैयर को सिर्फ पत्रकार कहना सही नहीं होगा। हालांकि उन्हें पत्रकारिता का भीष्म पितामह जरूर कहा जा सकता है। कुलदीप नैयर उन लोगों और पत्रकारों में से एक थे जिन्होंने सरकार के सही फैसलों पर उनकी सराहना करने और गलत फैसलों पर उनकी आलोचना करने से कभी नहीं चूके। उन्होंने भारतीय राजनीति को बेहद करीब से जाना भी और समझा भी। यही वजह है कि जब इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लूस्टार के जरिये स्वर्ण मंदिर में मौजूद उग्रवादियों को बाहर खदेड़ने या मार गिराने का फैसला किया था तब उन्होंने इस फैसले को जल्दबाजी में लिया गया फैसला कहा। हाल ही में उनके प्रकाशित लेखों में इस बात की तस्दीक भी होती है। उनका कहना था कि इंदिरा गांधी को यह फैसला लेने में और विचार करना चाहिए था। उनकी निगाह में इस फैसले और बाद में सिखों की नाराजगी से बचा जा सकता था।
बहरहाल, कुलदीप नैय्यर की बात की जाए तो उन्होंने सिर्फ इंदिरा गांधी का ही नहीं बल्कि जवाहरलाल नेहरू फिर लाल बहादुर शास्त्री का दौर और उनकी राजनीति बेहद करीब से देखी थी। जहां तक पंडित नेहरू की बात है तो उनकी भी आलोचना करने से वह कभी पीछे नहीं रहे। अपनी एक किताब में उन्होंने नेहरु के बारे में लिखा था कि उन्होंने ऐसे समझौते किए थे जो उन्हें नहीं करने चाहिए थे। लेकिन फिर भी वे मेरे हीरो थे और मैं उनकी कमियों के लिए यह तर्क देता था कि देश को एक रखने के लिए उन्हें सभी तरह के हितों, प्रदेशों और धर्मों का ध्यान रखना पड़ता था।
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