नवंबर 1947 में हैदराबाद ने भारत के साथ यथास्थिति बनाए रखने संबंधी समझौता किया.

सरदार वल्‍लभभाई पटेल की जयंती के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक लेख में कहा है कि जब देश आजाद हुआ तो ब्‍यूरोक्रेट वीपी मेनन ने सरकारी सेवा से रिटायर होने की इच्‍छा व्‍यक्‍त की. इस पर सरदार पटेल ने कहा कि ये समय रिटायर होने का नहीं है. उसके बाद मेनन को विदेश विभाग का सचिव बनाया गया. उन्‍होंने अपनी किताब द स्‍टोरी ऑफ द इंटीग्रेशन ऑफ इंडियन स्‍टेट्स में लिखा है कि देसी रियासतों के एकीकरण में सरदार पटेल ने किस तरह अग्रणी भूमिका निभाई. उन्‍होंने अपनी पूरी टीम को परिश्रम से काम करने के लिए प्रेरित किया.

हैदराबाद का किस्‍सा
कहा जाता है कि हैदराबाद रियासत के एकीकरण का काम सबसे दुष्‍कर था लेकिन सरदार पटेल के कुशल नेतृत्‍व में इसका एकीकरण हुआ. दरअसल भारत की आजादी के साथ ही कई समस्‍याएं विरासत में मिलीं. उनमें से तीन सबसे बड़ी थीं. जम्‍मू-कश्‍मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद. शुरुआती दो ने तो थोड़े ना-नुकुर के बाद भारत की अधीनता स्‍वीकार कर ली लेकिन हैदराबाद रियासत अड़ गई कि वह भारत से एक स्‍वतंत्र मुल्‍क रहेगा. दरअसल आजादी से पहले हिंदुस्‍तान की सभी रियासतें अंग्रेजों के साथ सहयोग संधि (सब्सिडियरी अलायंस) से बंधी थीं. इसके तहत अपनी सीमाओं के भीतर वे स्‍व-शासन के फॉर्मूले पर चलती थीं लेकिन बाहरी मामलों पर अंग्रेजों का अधिकार था.

1947 के इंडियन इंडिपेंडेंस एक्‍ट के तहत अंग्रेजों ने इन सभी को छोड़ दिया. उसके बाद ये इस बात को तय करने के लिए स्‍वतंत्र हो गए कि वे भारत या पाकिस्‍तान में से किसी के साथ रहना चाहेंगे या आजाद मुल्‍क की तरह बर्ताव करेंगे. 1948 तक सभी रियासतों ने अपनी भौगौलिक स्थिति के आधार पर भारत या पाकिस्‍तान को अपना मुल्‍क मान लिया लेकिन सबसे शक्तिशाली और समृद्ध हैदराबाद रियासत ने इन सबसे इनकार कर दिया.

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उस वक्‍त हैदराबाद के निजाम उस्‍मान अली खान (आसिफ जाह सप्‍तम) थे और रियासत की बहुसंख्‍यक आबादी हिंदू थी. रियाया तो भारत के साथ जाना चाहती थी लेकिन निजाम अपनी मुस्लिम कुलीनों से बनी फौज रजाकर के दम पर उन पर राज करना चाहते थे. रजाकर हैदराबार रियासत के भारत के साथ विलय के खिलाफ थे. उन्‍होंने निजाम के शासन का समर्थन किया और पाकिस्‍तान में विलय का प्रयास भी किया

नवंबर 1947 में हैदराबाद ने भारत के साथ यथास्थिति बनाए रखने संबंधी समझौता किया. लेकिन रजाकरों के हिंदू आबादी पर बढ़ते जुल्‍मो-सितम के कारण उपप्रधानमंत्री सरदार वल्‍लभभाई पटेल ने फैसला लेते हुए हैदराबाद रियासत में पुलिसिया कार्रवाई करने का आदेश दिया. इस एक्‍शन को ही कोडनेम ऑपरेशन पोलो के नाम से जाना जाता है और 13 सितंबर, 1948 को सुबह चार बजे ये एक्‍शन शुरू हुआ. निजाम की सेना यानी रजाकरों के शुरुआती प्रतिरोध के बाद 18 सितंबर तक पूरी रियासत पर भारत का नियंत्रण हो गया. निजाम ने सरेंडर करते हुए भारत के साथ विलय के समझौते पर हस्‍ताक्षर कर दिए. इस तरह हैदराबाद का भारत में विलय हो गया.

हैदराबाद रियासत (1724-1948)

मुगलों के दक्‍कन में गवर्नर मीर कमरुद्दीन खान ने 1724 में स्‍वतंत्र हैदराबाद रियासत की स्‍थापना की. उससे पहले 1713-21 तक वह दक्‍कन का गवर्नर था. वह निजाम-उल-मुल्‍क के टाइटल के साथ गद्दी पर बैठा और आसिफ जाही वंश की स्‍थापना की. इस वंश के सात निजाम ने 1948 तक हैदराबाद रियासत पर राज्‍य किया. उस्‍मान अली खान अंतिम निजाम था.

भौगोलिक लिहाज से हैदराबाद रियासत देश के दक्षिण-मध्‍य क्षेत्र में स्थित थी. इसकी राजधानी हैदराबाद थी. मौजूदा तेलंगाना, कर्नाटक और महाराष्‍ट्र के कुछ हिस्‍सों से मिलकर यह रियासत बनी थी. अंग्रेजों के जमाने में उनसे सहयोग संधि स्‍थापित करने वाला हैदराबाद पहली रियासत थी.

जब भारत में विलय हुआ उस वक्‍त बाकियों की तुलना में हैदराबाद सबसे बड़ी और संपन्‍न रियासत थी. इसका भौगोलिक दायरा तकरीबन 82 हजार वर्ग मील था. 1941 की जनगणना में इसकी आबादी 1.6 करोड़ थी. उसमें से 85 प्रतिशत आबादी हिंदू थी लेकिन रियासत के 40 प्रतिशत भू-भाग का मालिकाना हक निजाम और मुस्लिम कुलीन वर्ग के पास था.

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