जब पुलिस कावेरी के घर पहुंची तो पता चला कि वो तो कई महीनों से गायब है। यह जानकर पुलिस भी हैरान रह गई। इसके बाद कावेरी के फोन कॉल को खंगाला गया तो पुलिस को पुष्पा नाम की एक युवती का नंबर मिला, जिसपर आखिरी बार बात हुई थी। फिर पुलिस पुष्पा के घर पहुंची तो वहां भी उन्हें उसी परिस्थिति का सामना करना पड़ा, यानी पुष्पा भी घर से गायब मिली। इसके बाद पुलिस का माथा ठनका और उन्होंने एक-एक कर कड़ियां जोड़नी शुरू की और ये कड़ी तब जाकर खत्म हो गई, जब पुलिस को मंगलौर के एक गांव से जुड़ा इस मामले का तार मिला। एक लड़की जो गायब हो गई थी, उसका फोन इसी गांव में अभी भी चालू था, जबकि बाकी लड़कियों के फोन बंद हो चुके थे। फिर पुलिस ने उस मोबाइल पर जो नंबर चालू था, उसपर फोन किया तो पता चला कि उस फोन को धनुष नाम का एक लड़का चला रहा है।
पुलिस तुरंत उस गांव में पहुंची और धनुष से पूछा तो उसने बताया कि उसे वो फोन उसके चाचा प्रोफेसर मोहन कुमार ने दिया है। फिर पुलिस ने प्रोफेसर मोहन कुमार को हिरासत में लिया और पूछताछ शुरू की। पहले तो वो कुछ भी बताने से बचता रहा, लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती दिखाई तो उसने सब राज उगल दिया। प्रोफेसर मोहन कुमार ने जो बताया, उसे सुनकर पुलिस के भी होश उड़ गए। चूंकि उस समय तक पुलिस यही समझ रही थी कि उन महिलाओं को सेक्स रैकेट जैसे धंधे में धकेल दिया गया होगा, लेकिन उसने बताया कि गायब हुई 20 लड़कियों की मौत का जिम्मेदार वही है। शुरुआती पूछताछ में उसने कुल 32 लड़कियों को मारने की बात कही थी, लेकिन बाद में उसने अपना बयान बदल दिया था।
प्रोफेसर मोहन कुमार ने बताया कि वो गरीब परिवार, जो दहेज नहीं दे सकते हैं या जिनकी लड़कियों की शादी नहीं हो रही है, उन लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फंसाता था और उनसे बिना पैसे के शादी करने की बात कहता था। फिर लड़कियों को शादी का झांसा देकर अपने पास बुलाता था और अगले दिन शादी करने की बात कहकर रात को उनके साथ शारीरिक संबंध बनाता था। फिर अगले दिन उन्हें बहाने से टॉयलेट में जाकर गर्भनिरोधक गोली खाने के लिए मना लेता था। चूंकि एक सरकारी स्कूल में शिक्षक रह चुका मोहन कुमार पहले ही इन गोलियों में साइनाइड मिला देता था, जिससे युवतियों की वहीं पर मौत हो जाती थी। इसके बाद वो उनकी ज्वैलरी लेकर वहां से भाग जाता था।
चूंकि साइनाइड हर दुकान में नहीं मिलता था और हर किसी को बेचा भी नहीं जाता था, इसलिए प्रोफेसर मोहन कुमार ने ज्वैलरी की एक दुकान में काम करने का बहाना बनाकर एक केमिकल डीलर से साइनाइड खरीदा। बाद में जब उस डीलर से भी पूछताछ हुई थी, तो उसने बताया था कि उसने मोहन कुमार को सुनार समझकर साइनाइड दिया था, क्योंकि इसका इस्तेमाल ज्वैलरी की पॉलिश के काम में होता है। हालांकि उस समय कर्नाटक में 250 रुपये किलो के हिसाब से आराम से साइनाइड मिल भी जाता था।
कहा जाता है कि मोहन कुमार हर लड़की से अपना नाम अलग-अलग बताता था और उसे झांसे में लेने के लिए अपनी जाति भी वही बताता था, जो लड़की की जाति होती थी। उसके करीब 12 उपनाम सामने आए थे। इसके अलावा वह खुद को सरकारी नौकरी में होना भी बताता था, जिससे लड़कियां जल्दी उसके झांसे में आ जाती थीं। गिरफ्तारी के बाद उसे साइनाइड मोहन या साइनाइड किलर के नाम से जाना जाने लगा। दिसंबर 2013 में मंगलौर की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने उसे 20 महिलाओं की हत्या का दोषी माना और फांसी की सजा सुनाई। इसमें सबसे हैरानी की बात ये भी है कि मोहन कुमार अपना केस खुद ही लड़ रहा था।