आपने एक से एक खूंखार सीरियल किलर्स के बारे में सुना होगा, लेकिन आज हम आपको जिस सीरियल किलर के बारे में बताने जा रहे हैं, उसके कत्ल करने का तरीका ही सबसे अलग था। इसे साइनाइड किलर या साइनाइड मोहन के नाम से जाना जाता है। इसे अगर भारत का सबसे खूंखार सीरियल किलर कहें तो गलत नहीं होगा, क्योंकि इसने कारनामे ही कुछ ऐसे किए हैं।
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साल 2009 की बात है। कर्नाटक के एक गांव की रहने वाली अनिता नाम की लड़की को एक लड़के से प्यार हो जाता है। दोनों शादी करना चाहते थे, इसलिए अनिता अपना घर-बाड़ छोड़कर लड़के के पास आ जाती है। चूंकि लड़के ने अगले दिन मंदिर में शादी करने का वादा किया था, इसलिए उस दिन वो एक लॉज में ठहर गए, जिसे लड़के ने पहले ही बुक कर लिया था। फिर रात को लड़के ने अनिता के साथ शारीरिक संबंध बनाए। अगले दिन सुबह अनिता दुल्हन के कपड़े और गहने पहनकर कमरे से निकल गई और हसन जिले के बस स्टैंड पर आई, जहां लड़का पहले से ही उसका इंतजार कर रहा था।
लड़के ने फिर अनिता को अपनी जेब से एक टैबलेट निकालकर दी। उसने बताया कि यह गर्भनिरोधक गोली है। हालांकि इस दौरान अनिता ने उससे कुछ सवाल पूछे, लेकिन उसने उसे समझा-बुझा दिया और कहा कि वो उस टैबलेट को बस स्टैंड के पास वाले टॉयलेट में जाकर खाए, क्योंकि इसे खाने से चक्कर भी आ सकते हैं। इस दौरान उसने अनिता से उसके सारे गहने उतरवा लिए और अपने पास रख लिया। फिर अनिता टैबलेट लेकर टॉयलेट के अंदर चली गई और दरवाजा बंद करके टैबलेट को खा लिया, जिसके बाद तुरंत ही उसकी मौत हो गई। चूंकि उस समय टॉयलेट के बाहर अन्य महिलाएं खड़ी थीं और जब काफी देर बाद तक दरवाजा नहीं खुला तो उन्होंने दरवाजा पीटना शुरू कर दिया। इसके बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला और ना ही अंदर से कोई आवाज आई तो इसके बारे में पुलिस को सूचना दी गई।
पुलिस मौके पर पहुंची और दुल्हन बनी अनिता का शव टॉयलेट के अंदर से निकाला। इस दौरान अनिता के साथ जो लड़का मौजूद था, वो वहां से गायब हो चुका था। हालांकि इसके बारे में पुलिस को बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि अनिता के साथ कोई था भी। अब सवाल उठता है कि वो लड़का था कौन और अनिता की मौत कैसे हुई? दरअसल, इसके पीछे एक लंबी कहानी है, जिसकी शुरुआत साल 2003 से हुई थी।
साल 2003 से लेकर 2009 के बीच दक्षिण कर्नाटक के छह शहरों में अलग-अलग बस स्टैंड के पास बने टॉयलेट से 20 महिलाओं की लाशें मिली थीं। इन सभी लाशों में कई समानताएं थीं, जैसे कि सभी महिलाओं की लाशें टॉयलेट के अंदर से ही मिली थीं, सभी की उम्र 20-32 साल के बीच थी, सभी ने दुल्हन की ड्रेस पहन रखी थी और किसी के भी शरीर पर एक भी गहना नहीं था। हालांकि पुलिस को तब भी कोई शक नहीं हुआ कि आखिर मामला क्या है, क्योंकि सभी लाशें अलग-अलग शहरों में मिली थीं और इन शहरों की पुलिस के बीच आपसी तालमेल नहीं था।
अब शुरुआत फिर वही अनिता से करते हैं। चूंकि 16 जून, 2009 को 22 वर्षीय अनिता जब अपने गांव बंटवाल से गायब हुई तो वहां के लोगों ने हंगामा कर दिया। लोगों ने मामले को सांप्रदायिक रंग देते हुए कहा कि अनिता को कोई मुस्लिम लड़का भगा ले गया है। इस दौरान उन्होंने गुस्से में पुलिस स्टेशन को भी जला देने की धमकी दी। इसके बाद पहली बार पुलिस मामले की जांच के लिए मजबूर हुई और एक महीने के अंदर केस को सुलझा लेने का वादा किया। इसके बाद पुलिस ने अनिता के फोन कॉल को खंगालना शुरू किया तो उन्हें पता चला कि वो नंबर कावेरी नाम की एक महिला का था।
जब पुलिस कावेरी के घर पहुंची तो पता चला कि वो तो कई महीनों से गायब है। यह जानकर पुलिस भी हैरान रह गई। इसके बाद कावेरी के फोन कॉल को खंगाला गया तो पुलिस को पुष्पा नाम की एक युवती का नंबर मिला, जिसपर आखिरी बार बात हुई थी। फिर पुलिस पुष्पा के घर पहुंची तो वहां भी उन्हें उसी परिस्थिति का सामना करना पड़ा, यानी पुष्पा भी घर से गायब मिली। इसके बाद पुलिस का माथा ठनका और उन्होंने एक-एक कर कड़ियां जोड़नी शुरू की और ये कड़ी तब जाकर खत्म हो गई, जब पुलिस को मंगलौर के एक गांव से जुड़ा इस मामले का तार मिला। एक लड़की जो गायब हो गई थी, उसका फोन इसी गांव में अभी भी चालू था, जबकि बाकी लड़कियों के फोन बंद हो चुके थे। फिर पुलिस ने उस मोबाइल पर जो नंबर चालू था, उसपर फोन किया तो पता चला कि उस फोन को धनुष नाम का एक लड़का चला रहा है।
पुलिस तुरंत उस गांव में पहुंची और धनुष से पूछा तो उसने बताया कि उसे वो फोन उसके चाचा प्रोफेसर मोहन कुमार ने दिया है। फिर पुलिस ने प्रोफेसर मोहन कुमार को हिरासत में लिया और पूछताछ शुरू की। पहले तो वो कुछ भी बताने से बचता रहा, लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती दिखाई तो उसने सब राज उगल दिया। प्रोफेसर मोहन कुमार ने जो बताया, उसे सुनकर पुलिस के भी होश उड़ गए। चूंकि उस समय तक पुलिस यही समझ रही थी कि उन महिलाओं को सेक्स रैकेट जैसे धंधे में धकेल दिया गया होगा, लेकिन उसने बताया कि गायब हुई 20 लड़कियों की मौत का जिम्मेदार वही है। शुरुआती पूछताछ में उसने कुल 32 लड़कियों को मारने की बात कही थी, लेकिन बाद में उसने अपना बयान बदल दिया था।
प्रोफेसर मोहन कुमार ने बताया कि वो गरीब परिवार, जो दहेज नहीं दे सकते हैं या जिनकी लड़कियों की शादी नहीं हो रही है, उन लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फंसाता था और उनसे बिना पैसे के शादी करने की बात कहता था। फिर लड़कियों को शादी का झांसा देकर अपने पास बुलाता था और अगले दिन शादी करने की बात कहकर रात को उनके साथ शारीरिक संबंध बनाता था। फिर अगले दिन उन्हें बहाने से टॉयलेट में जाकर गर्भनिरोधक गोली खाने के लिए मना लेता था। चूंकि एक सरकारी स्कूल में शिक्षक रह चुका मोहन कुमार पहले ही इन गोलियों में साइनाइड मिला देता था, जिससे युवतियों की वहीं पर मौत हो जाती थी। इसके बाद वो उनकी ज्वैलरी लेकर वहां से भाग जाता था।
चूंकि साइनाइड हर दुकान में नहीं मिलता था और हर किसी को बेचा भी नहीं जाता था, इसलिए प्रोफेसर मोहन कुमार ने ज्वैलरी की एक दुकान में काम करने का बहाना बनाकर एक केमिकल डीलर से साइनाइड खरीदा। बाद में जब उस डीलर से भी पूछताछ हुई थी, तो उसने बताया था कि उसने मोहन कुमार को सुनार समझकर साइनाइड दिया था, क्योंकि इसका इस्तेमाल ज्वैलरी की पॉलिश के काम में होता है। हालांकि उस समय कर्नाटक में 250 रुपये किलो के हिसाब से आराम से साइनाइड मिल भी जाता था।
कहा जाता है कि मोहन कुमार हर लड़की से अपना नाम अलग-अलग बताता था और उसे झांसे में लेने के लिए अपनी जाति भी वही बताता था, जो लड़की की जाति होती थी। उसके करीब 12 उपनाम सामने आए थे। इसके अलावा वह खुद को सरकारी नौकरी में होना भी बताता था, जिससे लड़कियां जल्दी उसके झांसे में आ जाती थीं। गिरफ्तारी के बाद उसे साइनाइड मोहन या साइनाइड किलर के नाम से जाना जाने लगा। दिसंबर 2013 में मंगलौर की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने उसे 20 महिलाओं की हत्या का दोषी माना और फांसी की सजा सुनाई। इसमें सबसे हैरानी की बात ये भी है कि मोहन कुमार अपना केस खुद ही लड़ रहा था।