मोक्षनगरी गया में हर साल विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेले में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पहुंचकर अपने पितरों के आशीर्वाद के लिए पिंडदान और तर्पण करते हैं. लेकिन इस बार कोरोना वायरस की वजह से विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला रद्द कर दिया गया है. लेकिन धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं को जिंदा रखने के लिए पंडा समाज खुद कर रहा है पिंडदान.
कोविड-19 की रोकथाम और बचाव के मद्देनजर राज्य सरकार और जिला प्रसाशन की ओर से 15 दिवसीय पितृपक्ष मेला रद्द किया गया है, जिस कारण गया धाम और बोधगया में सन्नाटा पसरा है.
गया के विभिन्न पिंडवेदियों और बोधगया के महाबोधि मंदिर और धर्मारण्य में पिंडदानी पिंडदान किया करते थे, लेकिन इस साल यह सभी जगह वीरान पड़ी हैं. मेला क्षेत्र अंतर्गत सभी दुकानों में मंदी छाई हुई है, वहीं होटल भी बन्द पड़े हैं.
गयापाल पंडा का पिंडदान करने वाले ओमकार नाथ पंडा ने बताया कि इस बार गया में होने वाला विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला रद्द कर दिया गया है. पितृपक्ष मेला रद्द किए जाने के बाद तीर्थयात्रियों व पिंडदानियों के आने पर रोक लग गई है. वर्षों से चली आ रही धार्मिक मान्यताओं व परंपराओं को जीवित रखने के उद्देश्य से विष्णुपद क्षेत्र के गयापाल पंडा खुद अपने पितरों का 15 दिन का पिंडदान कर रहे है.
पिंडदान करने वाले पंडा समाज के विवेक भैया मोती वाले पंडा का कहना है कि हम लोग अपने पितरों का श्राद्ध कर रहे हैं. वेदों और पुराणों में यह कहा गया है कि पुत्र के तीन कर्तव्य हैं. पहला कर्तव्य यह है कि माता पिता की बातों का पालन करना.
दूसरा, जब माता-पिता अपना शरीर छोड़ देते हैं तो उनका क्रियाक्रम करना और तीसरा कर्तव्य है गया में अपने पितरों का पिंडदान करना. कोरोना महामारी को लेकर लोग गयाजी में देश, विदेश से अपने पितरों का पिंडदान करने आते थे. लेकिन इस बार नहीं आ सके हैं. ऐसे में परंपरा को जीवित रखने के लिए यह कार्यक्रम किया जा रहा है.
धार्मिक ग्रंथों में ऐसा कहा गया है कि गयाजी में साक्षात् भगवान विष्णु का दर्शन करके मानव सभी ऋणों से मुक्त हो जाता है. भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म ग्रंथों में पितृऋण से मुक्ति पाने के लिए अपने माता-पिता और परिवार के मृत प्राणियों के निमित्त गया श्राद्ध करने की अनिवार्यता बताई गई है.