दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक सार्वजनिक याचिका पर स्वास्थ्य मंत्रालय को नोटिस जारी किया है। याचिका में तंबाकू उत्पाद के विज्ञापन, प्रचार, और प्रायोजन पर प्रतिबंध लगाने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की गई है।
याचिका पर मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति हरि शंकर की खंडपीठ ने उक्त मंत्रालय को निर्देश दिया है कि वह सुनवाई की अगली तारीख पर अपना जवाब सकारात्मक रूप से दाखिल करें नहीं तो उनके खिलाफ भारी शुल्क लगाए जाएगा। मौजूदा याचिका श्रमिकों के मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए दायर की गई है। साथ ही उन बच्चों के लिए भी जो तम्बाकू उत्पाद के निर्माण, पैकिंग, बिक्री और विज्ञापन के लिए रिस्पॉन्डेंट कंपनी के साथ काम कर रहे हैं।
यह तर्क दिया जाता है कि उक्त कंपनी डब्ल्यूएचओ के फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबैको कंट्रोल (एफसीटीसी) के अनुच्छेद 13 के उल्लंघन में तंबाकू उत्पाद का विज्ञापन कर रही है, जो तंबाकू उत्पादों के लिए सरोगेट विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाती है। इसके अलावा यह भी दावा किया गया है कि उक्त विज्ञापन सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पादों (व्यापार और वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति और वितरण का निषेध) अधिनियम, 2003 की धारा 5 का उल्लंघन भी हैं। साथ ही ये भा दावा किया गया है कि कंपनी ने स्वास्थ्य लाभ के साथ हर्बल उत्पाद के रूप में तंबाकू का विज्ञापन करती है, जिसे सिगरेट के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। उक्त उत्पाद के पैकेट पर कोई वैधानिक चेतावनी भी नहीं है।
तम्बाकू अधिनियम के अलावा, याचिकाकर्ता ने विभिन्न श्रमिक कल्याण विधानों जैसे कि न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, दिल्ली की दुकानें और प्रतिष्ठान अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम, ट्रेड यूनियन अधिनियम, आदि के उल्लंघन का भी हवाला दिया है। याचिका में ये भी उजागर किया गया है कि रेस्प्लेंडेंट कंपनी अपने तंबाकू उत्पादों के लिए प्लास्टिक पैकेजिंग का उपयोग कर रही है जो अंकुर गुटखा बनाम भारतीय अस्थमा देखभाल और साथ ही प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन है।