भारत की जनजातीय कला अब दुनिया के सबसे बड़े मंच पर गूंजने जा रही है। केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने शुक्रवार को भारत के जनजातीय कलाकारों की प्रतिष्ठित वेनिस बिएनाले 2026 में हिस्सा लेने की घोषणा की। यह घोषणा नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय जनजातीय कला और भारत का संरक्षण दृष्टिकोण सम्मेलन के दौरान की। उन्होंने कहा, कि जनजातीय कलाकार भारत की संस्कृति के असली वाहक हैं और अब उनकी कला को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने का समय आ गया है।
सम्मेलन का आयोजन संस्कला फाउंडेशन ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, भोपाल और भारतीय उद्योग परिसंघ के साथ मिलकर किया था। सम्मेलन स्थल पर लगी प्रदर्शनी ‘’साइलेंट कन्वर्सेशन फॉर्म मार्जिन्स टू द सेंटर’’ ने सबका मन मोह लिया। दीवारों पर सजी पेंटिंग्स जैसे जंगलों की कहानियां सुना रही थीं। कहीं हरे पत्तों के पीछे छिपा बाघ था, कहीं मां की गोद में सिमटी प्रकृति। बस्तर से आए गुजराल सिंह बघेल की पेंटिंग में वन रक्षक की झलक दिखी।
राजेन्द्र सिंह राजावत की पेंटिंग टाइगर फेस बिहाइंड द लीव्स में रणथंभौर के जंगलों की गहराई और रहस्य झलकते रहे थे। वहीं, रागिनी धुर्वे की कलाकृति द एंब्रेस ऑफ मदर में गोंड कला के रंगों से मां और धरती के अटूट संबंध को खूबसूरती से उकेरा गया। छत्तीसगढ़ की कलाकार प्रेरणा नाग की पेंटिंग फीयरलेस में आधुनिक स्त्री की निडरता और प्रकृति के प्रति उसकी जुड़ाव की झलक दिखती है।