‘तेज भागती भारतीय अर्थव्यवस्था को गोली मार दी गई’

allparty_650_112216024206एक तेज भागती अर्थव्यवस्था में नोटबंदी (डिमॉनेटाइजेशन) ठीक उसी तरह है जैसे एक तेज रफ्तार रेसिंग कार के पहिए पर गोली मारना. यह कहना है ज़्यां द्रेज़ का. पेशे से अर्थशास्त्री और यूपीए कार्यकाल के दौरान नेशनल एडवाइजरी काउंसिल के सदस्य रहे ज़्यां द्रेज़ ने एक बिजनेस अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा कि नोटबंदी का फैसला उन लोगों के लिए एक भयावह स्थिति पैदा कर रहा है जो गरीबी रेखा के नीचे हैं. ज़्यां द्रेज़ का मानना है कि यह कदम विपक्षी दलों को निशाना साध कर उठाया गया है.

नोटबंदी पर जारी बहस में एक भ्रम हावी है कि इसका सीधा असर अर्थव्यवस्था में मौजूद ब्लैकमनी पर पड़ेगा. कालेधन को निकालकर बाहर फेंकने, शैडो इकोनॉमी को कुचलने और पैरेलल इकोनॉमी के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक करने के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं. यह दावे सरकार और उसके पक्ष में खड़े लोगों द्वारा नोटबंदी को जायज ठहराने के लिए हो रहे हैं. कहा जा सकता है कि यह दावे कालेधन के उस संचय सिद्धांत पर आधारित है जिसके मुताबिक जहां कालेधन का ढेर हो वह स्वत: बढ़ता रहता है लिहाजा उसे साफ करना जरूरी हो जाता है. यह सिद्धांत पूरी तरह से गलत है.

कालाधन रखना वाला धूर्त व्यक्ति अपनी काली कमाई के कैश को सूटकेस में भरकर रखने से बेहतर तरीके जानता है. वह अपनी काली कमाई को खर्च करता है, निवेश करता है और कैश को किसी अन्य रूप में बदल लेता है. वह संपत्ति खरीद लेता है, महंगी शादियों पर उड़ा देता है, दुबई में शॉपिंग करता है या नेताओं को खुश करने के लिए खर्च कर देता है. हालांकि यह भी सत्य है कि किसी दिए समय में कुछ कालाधन उसके पास रसोई के डिब्बे या तकिया की खोल में भी पड़ा हो. लेकिन इस बचे-खुचे कालेधन को बाहर निकालने की कवायद कुछ उसी तरह है कि आप कमरे में शावर चलाकर पोछा लगाएं. लिहाजा इस कदम को कालेधन के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक की संज्ञा देना महज एक भ्रम है. दुनियाभर के कई अर्थशास्त्री यह तर्क सामने रख चुके हैं लेकिन सरकार को अपना ही ढोल सुहावना लग रहा है.

 

कालेधन का संचय करने का काम संभवत: राजनीतिक दल करते हैं. उनके लिए यह तार्किक है कि बड़ी मात्रा में कैश एकत्रित करे जिससे चुनाव प्रचार के काम को सहज किया जा सके. विपक्षी दल नोटबंदी के प्रमुख टार्गेट हैं. सत्तारूढ़ दल पर इसका कम असर होगा. हालांकि जॉं द्रेज कहते हैं कि वह राजनीतिक दलों द्वारा जारी फर्जीवाड़ों के सख्त खिलाफ हैं लेकिन मानते हैं कि यह तरीका राजनीतिक दलों को ठीक करने के लिए उचित नहीं है.

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