डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने की राह हुई बंद, अब 2024 का इंतजार

अमेरिकी चुनाव में पराजय के साथ ही रिपब्लिकन पार्टी में राष्ट्रपति ट्रंप की जगह हथियाने की होड़ शुरू हो गई है। यह लगभग साफ हो जाने के बाद कि ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने की राह बंद हो गई है, पार्टी के कई नेता अब खुल कर उनके खिलाफ बोलने लगे हैं। 

रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक वर्ग में ट्रंप की भारी लोकप्रियता के कारण चार साल तक पार्टी के अंदर उनके खिलाफ कोई सुगबुगाहट नहीं होती थी। पार्टी महाभियोग मामले में भी उनके पक्ष में बिल्कुल दलगत आधार पर एकजुट हो गई थी। इसके अलावा राष्ट्रपति के कई कदमों का पार्टी नेताओं ने भी समर्थन किया जिन्हें आम व्यवहार के खिलाफ समझा गया। 

हालात बदलते ही अब चुनाव में धांधली होने के ट्रंप के आरोप को लेकर पार्टी नेता उनसे दूरी बनाते नजर आ रहे हैं। मसलन, मैरीलैंड राज्य के गवर्नर लैरी हॉगन ने चुनाव प्रणाली पर ट्रंप के आक्षेप को बहुत परेशान करने वाला व्यवहार बताया तो 2012 में रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रहे मिट रॉमनी ने इसे गैर-जिम्मेदाराना कहा। 

कई विश्लेषकों ने आगाह किया है कि ये मानना भी जल्दबाजी होगी कि ट्रंप कमजोर हो गए हैं। दरअसल, ताजा चुनाव की एक अहम कहानी यह है कि तमाम अनुमानों को झुठलाते हुए उन्होंने अपने समर्थन आधार का विस्तार किया। उन्हें सात करोड़ से ज्यादा वोट मिले। यह उनके किए राजनीतिक और सामाजिक ध्रुवीकरण का ही नतीजा है कि रिपब्लिकन पार्टी सीनेट के चुनाव में मुकाबले में बनी रही। हाउस ऑफ रिप्रजेटेंटिव के चुनाव में तो उसने पहले से पांच सीटें ज्यादा हासिल की हैं।    

इस बीच ये चर्चा भी है कि अगर ट्रंप कानूनी लड़ाइयों में भी विफल हो जाते हैं और आखिरकार उन्हें राष्ट्रपति पद छोड़ना पड़ता है, तब भी वह राजनीति में एक मजबूत शख्सियत बने रहेंगे। 2024 के चुनाव में वे या उनकी विरासत संभालने वाला नेता ही पार्टी का नेतृत्व करेगा। उनकी विरासत संभालने वालों में जिन नामों की चर्चा है, उनमें सीनेटर टेड क्रुज, सीनेटर टॉम कॉटन और फ्लोरिडा राज्य के गवर्नर रॉन डिसैंतिस शामिल हैं। एक चर्चा यह भी है कि ट्रंप के बेटे डॉनल्ड ट्रंप जूनियर या एरिक ट्रंप भी अपने दांव आजमा सकते हैं।

बहुचर्चित किताब ‘हाउ फासिज्म वर्क्सः द पॉलिटिक्स ऑफ अस एंड देम’ के लेखक और येल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेसॉन स्टैनली ने कहा है कि ट्रंपिज्म (ट्रंपवादी राजनीति) मजबूत बना रहेगा, क्योंकि ट्रंप अपने समर्थकों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं। और रिपब्लिकन पार्टी के नेता हमेशा व्यावहारिक नजरिया अपनाते हैं-यानी जिस राह को अपनाने में लाभ दिखे, उसी पर चलते हैं। इसीलिए पार्टी के अंदर ट्रंप को नापसंद करने वाले बहुत से नेता भी उनका समर्थन करते रहे। ट्रंप ने धुर दक्षिणपंथी और नस्लवादी नीति अपनाई, जिसे श्वेत समुदाय में भारी समर्थन मिला। स्टैनली ने कहा कि ट्रंप के नेतृत्व में रिपब्लिकन पार्टी शुरू से ही अलोकतांत्रिक कार्य करती रही। तमाम नेता इस पर चुप रहे, इसलिए अब ट्रंप के खिलाफ बोलने वाले नेताओं की कोई नैतिक साख नहीं बन सकती।    

अब ये देखने की बात होगी कि उटाह राज्य से सीनेटर मिट रॉमनी जैसे नेता जो अब ट्रंप की आलोचना कर रहे हैं, उनके इस व्यवहार पर पार्टी में क्या प्रतिक्रिया होती है। फिलहाल, ट्रंप समर्थक कई नेताओं ने रोमनी और ट्रंप पर सवाल उठाने वाले नेताओं की आलोचना की है। विश्लेषकों के मुताबिक असल सवाल यह है कि क्या ट्रंप के बाद रिपब्लकिन पार्टी पहले की तरह उदार दक्षिणपंथी रुख की तरफ लौटेगी, या वह ट्रंपवादी नीतियों पर चलती रहेगी। फिलहाल, मजबूत संभावना उसके ट्रंप के रास्ते पर चलते रहने की है।

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