दुनियाभर में डायबिटीज एक महामारी का रूप लेता जा रहा है। दुनिया में 50 करोड़ से अधिक लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं। इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन की रिपोर्ट के अनुसार, 20 से 79 साल की उम्र के 46.3 करोड़ लोग डायबिटीज से ग्रसित हैं। यह इस आयु वर्ग में दुनिया की 9.3 फीसद आबादी है। हालांकि, एम्स का एक हालिया अध्ययन डायबिटीज के मरीजों के लिए वरदान बन सकता है। इस स्टडी की बड़ी खासियत यह है कि इसमें दो चिकित्सा पद्धतियों- एलॉपैथी और आयुर्वेद की कुछ दवाइयों को मिलाकर नए इलाज का तरीका खोजा गया है। डॉक्टरों का दावा है कि यह इलाज मधुमेह के साथ-साथ दिल के मरीजों के लिए भी कारगर होगा।

क्या है अध्ययन?
एम्स के फॉर्मेकोलॉजी विभाग के डॉ. सुधीर चंद्र सारंगी की निगरानी में ये अध्ययन हो रहा है। इसे तीन चरणों में किया जा रहा है, जिसका पहला चरण करीब डेढ़ साल बाद पूरा हुआ है। अध्ययन के अनुसार, बीजीआर-34 और एलोपैथिक दवा ग्लिबेनक्लामीड का पहले अलग-अलग और फिर एक साथ परीक्षण किया गया। दोनों ही परीक्षणों के परिणामों की जब तुलना की गई तो पता चला कि एक साथ देने से दोगुना असर होता है। इससे इंसुलिन के स्तर को बहुत तेजी से बढ़ावा मिलता है और लेप्टिन हार्मोन का स्तर कम होने लगता है। विजयसार, दारुहरिद्रा, गिलोय, मजीठ, गुड़मार और मिथिका जड़ी बूटियों पर लखनऊ स्थित सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स और नेशनल बॉटनिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट ने गहन अध्ययन के बाद बीजीआर-34 की खोज की थी।
डायबिटीज और दिल के रोगियों के लिए फायदेमंद
डॉक्टरों के अनुसार, डॉक्टरों का कहना है कि इंसुलिन का स्तर बढ़ने से जहां डायबिटीज नियंत्रित होना शुरू हो जाता है, वहीं लेप्टिन हार्मोन कम होने से मोटापा और मेटाबॉलिज्म से जुड़े अन्य नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं। इतना ही नहीं, इसके इस्तेमाल से कोलेस्ट्रोल में ट्राइग्लिसराइड्स एवं वीएलडीएल का स्तर भी कम हो रहा है, जिसका मतलब है कि मधुमेह रोगी में हार्ट अटैक की आशंका कम होने लगती है। यह एचडीएल (अच्छे कोलेस्ट्राल) के स्तर को बढ़ाकर धमनियों में ब्लॉकेज नहीं होने देती है।
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