एक बार महादेव ने क्रोध में सूर्य देवता पर त्रिशूल से प्रहार कर दिया था क्योंकि सूर्यदेव ने माली और सुमाली को मारने का प्रयास किया था, इससे सूर्य देवता की चेतना नष्ट हो गई और वो रथ से नीचे गिर पड़े. जब कश्यप मुनि ने देखा कि उनके पुत्र का जीवन खतरे में है, तब वे उन्हें छाती से लगाकर विलाप करने लगे.
उस समय सारे देवताओं में हाहाकार मच गया. वे सभी भयभीत होकर जोर-जोर से रुदन करने लगे.अंधकार छा जाने से सारे जगत में अंधेरा हो गया. तब ब्रह्मा के पौत्र तपस्वी कश्यप ने शिवजी को श्राप दिया और बोले तुम्हारे प्रहार के कारण जैसा मेरे पुत्र का हाल हो रहा है, ठीक वैसा ही तुम्हारे पुत्र का भी होगा.
यह सुनकर भोलेनाथ का क्रोध शांत हो गया. उन्होंने सूर्य को फिर से जीवित कर दिया. जब उन्हें कश्यपजी के श्राप के बारे में पता चला, तो उन्होंने सभी का त्याग करने का निर्णय लिया.ब्रह्मदेव, महादेव जी और कश्यप मुनि ने सूर्य को आशीर्वाद देकर अपने-अपने भवन चले गए. इधर सूर्य भी अपनी राशि पर आरूढ़ हुए. तब स्वयं ब्रह्मा ने माली और सुमाली से सूर्य की आराधना करके निरोगी होने का फल मांगने का सुझाया था.