नये साल में नये कपड़े, नये पकवान, नई जगहों का भ्रमण, और हर साल की तरह – नये संकल्प, नये लक्ष्य। प्रत्येक साल हमारे संकल्प और लक्ष्य कुछ ही दिनों में कोरी बात बनकर रह जाते हैं। नया चाहिए तो सबको, पर शायद मिलता किसी को नहीं। क्या कारण है? क्यों जीवन को एक नया रंग-ढंग देने के हमारे सभी संकल्प समय के साथ फ़ीके पड़ जाते हैं? क्यों कुछ नया पाने की चाह में हम पुराने को ही दोहरा जाते हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे संकल्पों की गुणवत्ता में ही कमी है।
क्यों नहीं पूरे होते हमारे संकल्प
इस विषय में हमें यह बाज अच्छी तरह जान लेनी चाहिए कि आमतौर पर हम जिस भी लक्ष्य के पीछे भागते हैं, वो हमें किसी और से मिला होता है। नतीजतन, उसके प्रति लिए संकल्प में भी बहुत दम नहीं होता। जो लक्ष्य हमें समाज ने दिए होते हैं, उनके प्रति हम बहुत समय तक ऊर्जावान नहीं रह पाते। जो लक्ष्य हमें एक विशेष परिस्थिति ने, एक विशेष दिन ने दिए होते हैं, वो उस परिस्थिति और दिन के बीतते ही स्वयं भी बीत जाते हैं।
ये जो बाहर से आया हुआ उत्साह होता है, यह ऐसा ही होता है जैसे कोई गाड़ी को धक्का लगा रहा हो। गाड़ी ठीक है, गाड़ी में इंजन भी है और हर प्रकार से स्वयं चलने के काबिल है, पर फिर भी गाड़ी में कोई बाहरी ताकत धक्का लगा रही है। वो गाड़ी कब तक चलेगी? जब तक धक्का लगेगा! और याद रखना धक्का सिर्फ एक दिशा में नहीं लग रहा है; दस ताकतें हैं जो दस दिशाओं में धक्का लगा रही हैं। तो अब गाड़ी की हालत क्या होगी? कभी इधर, कभी उधर।
याद रखना कि आपके सारे लक्ष्य दूसरों ने दिए हैं, इसलिए वो कौड़ी बराबर हैं, इसलिए उनकी कोई कीमत नहीं है। जीवन का एक ही लक्ष्य हो सकता है – अपने तक वापिस आ जाना। इसलिए अगर लक्ष्य बनाने ही हैं तो ऐसे लक्ष्य बनाएं जो आपको आप तक ही वापस ले आएं; अगर संकल्प लेने ही हैं तो ऐसे संकल्प लें जो प्रतिपल होश बनाये रखने में सहायक हों। आइए जानते हैं वो 10 बातें जो समझ के साथ जीवन में उतार ली जाएं तो होशपूर्ण और ख़रा जीवन जीने में अत्यंत सहायक सिद्ध हो सकती हैं –