
लेकिन, रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं, उससे ये पता चलता है कि अगर आप अपने टाइप के पार्टनर को खोज रहे हैं, तो आपको आईने में देखने की जरूरत है। ये रिसर्च, जर्मनी में 12 हजार से ज्यादा लोगों पर करीब 9 साल तक की गई थी। इस में वही लोग शामिल किए गए थे, जो खुले मिजाज के थे। जो नए तजुर्बे करने के लिए राजी थे। जो आसानी से किसी से सहमत हो जाते थे और ईमानदार थे।
क्यों ढूंढते हैं अपने टाइप पार्टनर
अब आप ये बात मानें या न मानें, अगर आप किसी साथी को तलाश रहे हैं, तो हो सकता है कि जिसकी तलाश हो उसमें आप अपने एक्स यानी पुराने पार्टनर जैसे गुण ही खोजते हैं और मिलने पर उसके साथ आसानी से जुड़ जाते हैं। मजे की बात ये है कि जर्मनी में जो रिसर्च हुई, उसमें न केवल साथियों के गुण एक जैसे थे, बल्कि कइयों के तो पार्टनर भी वही थे, यानी पुराने वाले।
रिसर्च से ये भी पता चला कि बहिर्मुखी लोगों के अपने जैसी खूबियों वाले साथी से रूमानी रिश्ते बनाने की संभावना बहुत कम ही होती है। तो, अगर हमारे रिश्ते हमारी सोच के समर्थक लोगों से बनते हैं. पर, अगर हम खुले जहन के हैं, तो हम जीवन में नए तरह के साथी के साथ भी तजुर्बे कर सकेंगे, ताकि दुनिया को देखने का एक नया नजरिया हमें मिले।
इस रिसर्च से ऑनलाइन डेटिंग के लिए भी नई उम्मीदें जगी हैं। जैसे संगीत सुनाने वाले ऐप आप की पसंद के हिसाब से गाने सुझाते हैं। वैसे ही, डेटिंग ऐप भी आप को आप के मिजाज के हिसाब से ही ऐसे लोगों से जुड़ने का सुझाव देंगे, जिनका व्यवहार आप से मिलता हो। अब रिसर्च से हमें ये तो पता नहीं चला कि ऐसे रिश्ते कितने समय तक चले। इसलिए, इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि कोई रिश्ता कितने दिन तक चलने वाला है।
अपने पार्टनर के साथ बहुत ज्यादा समानता आपके विकास में बाधक बन सकती है. अगर, आप से जुड़ने से पहले आपके पार्टनर का कोई पुराना रिश्ता रहा है, तो वो आप के लिए मुसीबत भी बन सकता है। क्योंकि नए साथी के गुण उसके पुराने पार्टनर से मिलते होंगे, तो आप के लिए ये फिक्र और नाउम्मीदी की बात है।
वैसे, इस तरह के रिसर्च का ये मतलब नहीं है कि अपने सोलमेट की तलाश आप को खत्म कर देनी चाहिए। जीवनसाथी के चुनाव में बहुत से मुद्दे असर डालते हैं। लेकिन, अगर आप का नया रिलेशनशिप स्टेटस, पहले जैसा ही दिखे, तो ये हैरानी की बात नहीं होगी।