आचार्य चाणक्य ने ‘चाणक्य नीति’ में ऐसी कई नीतियों को बताया गया है जिनका व्यक्ति अपने जीवन को सही मार्ग पर ले जाने में सहायता एवं लाभ ले सकते हैं। उन्होंने मनुष्य तथा पशु में सबसे बड़े अंतर् का भी जिक्र एक श्लोक में किया है। आइए जानते हैं इसके बारे में…
आहारनिद्राभयमैथुनं च सामान्यमेतत्पशुभिर्नराणाम्।
धर्मो हि तेषामधिको विशेषो धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः।।
इस श्लोक के जरिये चाणक्य बताते हैं कि भोजन करना, नींद लेना, भयभीत होना तथा संतान उत्पत्ति करना, ये चार बातें इंसान एवं पशु में एक जैसी होती हैं। इंसान में और पशुओं में सिर्फ धर्म का भेद है। यह एक मात्र ऐसी खास चीज है जो इंसान को पशु से अलग बनाती है। जिस इंसान में धर्म नहीं है वह पशु के समान है।
परोपकरणं येषां जागर्ति हृदये सताम।
नश्यन्ति विपद्स्तेषां सम्पद: स्यु: पदे पदे।।
चाणक्य इस श्लोक में कहते हैं कि जिन सज्जन व्यक्तियों के दिल में दूसरों का उपकार करने की भावना जाग्रत रहती है उनकी विपत्तियां समाप्त हो जाती हैं तथा पग-पग पर उन्हें धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है।