शिवसेना और राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की टूट से भाजपा का रास्ता आसान ही हुआ है लेकिन कुछ महीने चले मराठा आरक्षण आंदोलन और इसकी धुरी रहे मनोज जरांगे पाटिल का एक आह्वान उसके लिए चिंता का कारण बना हुआ है। देखना ये है कि पाटिल की अपील के बाद मराठा मतदाताओं को मनाने के लिए भाजपा क्या दांव चलेगी?
महाराष्ट्र के दो बड़े दलों शिवसेना और राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की टूट से भाजपा का रास्ता आसान ही हुआ है, लेकिन कुछ महीने चले मराठा आरक्षण आंदोलन और इसकी धुरी रहे मनोज जरांगे पाटिल का एक आह्वान उसके लिए चिंता का कारण बना हुआ है।
जरांगे पाटिल ने मराठा समाज से आह्वान किया है कि वह मराठों को कुनबी समाज का दर्जा देकर ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण देने के विरोधियों को हराए। राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र की 13 करोड़ आबादी में मराठा समाज 28 प्रतिशत है। वैसे तो अब तक महाराष्ट्र के ज्यादातर मुख्यमंत्री मराठा समाज से ही हुए हैं।
क्यों उठी मराठा आरक्षण की मांग?
अधिसंख्य सहकारी संगठनों, चीनी मिलों, सूत मिलों, दुग्ध संघों पर मराठा समाज का वर्चस्व है। इसके बावजूद यह भी सच है कि किसानों की आत्महत्याओं के लिए बदनाम महाराष्ट्र में 94 प्रतिशत आत्महत्याएं मराठा परिवारों से ही हुई हैं और मराठा समाज के 84 प्रतिशत परिवार प्रगतिशील की श्रेणी में नहीं आते हैं। यही कारण है कि मराठा समाज कई दशकों से शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की मांग करता रहा है।
पिछले वर्ष सितंबर से इस मांग ने तब जोर पकड़ा, जब एक मराठा युवक मनोज जरांगे पाटिल जालना जिले के गांव अंतरवाली सराटी में भूख हड़ताल पर बैठ गए और उनके समर्थकों की पुलिस के साथ झड़प हो गई। उनके समर्थकों पर पुलिस के लाठीचार्ज के बाद जरांगे पाटिल के अनशन स्थल पर विपक्षी दलों के नेताओं का तांता लग गया।
जरांगे पाटिल संतुष्ट नहीं
जरांगे शुरू में सिर्फ मराठों को आरक्षण देने की मांग कर रहे थे। सरकार इसके लिए पहले से प्रयासरत थी। वह राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की एक ऐसी रिपोर्ट चाहती थी, जिसके आधार पर मराठों को दिया गया आरक्षण सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी खारिज न किया जा सके, पर कुछ दिनों बाद जरांगे ने अपनी मांग बदल दी। उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि मराठवाड़ा क्षेत्र के सभी मराठों को कुनबी (खेती करने वाले मराठा) का दर्जा देकर उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कोटे के तहत आरक्षण दिया जाए।
सरकार के लिए यह काम मुश्किल था, क्योंकि इससे ओबीसी समुदाय के नाराज होने का खतरा था। फिर भी सरकार ने एक समिति बनाकर उसे उन मराठों की पहचान करने की जिम्मेदारी दे दी, जिन्हें आजादी से पहले निजाम हैदराबाद की रियासत में कुनबी माना जाता था।
जरांगे इससे भी संतष्टु नहीं हुए। उन्होंने अगली मांग रख दी कि न सिर्फ मराठवाड़ा, बल्कि पूरे महाराष्ट्र के सभी मराठों को कुनबी प्रमाणपत्र दिया जाए।
सरकार के लिए यह काम लगभग असंभव सा था। इस बीच सरकार 20 फरवरी को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर मराठों को शिक्षा व नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण देने का विधेयक लाने में सफल रही, लेकिन जरांगे इससे संतुष्ट नहीं हैं।
अशोक चव्हाण को लगाया मोर्चे पर: लोकसभा चुनाव में न जरांगे पाटिल खुद चुनाव लड़ रहे हैं, न अपनी ओर से किसी को लड़वा रहे हैं, लेकिन उन्होंने मराठा समाज की एक रैली में आह्वान किया है कि मराठा समाज को आरक्षण का विरोध करने वालों को हराएं।
जरांगे पाटिल का सीधा इशारा भाजपा एवं इसके नेता देवेंद्र फडणवीस का विरोध करने का है। मराठवाड़ा के आठ लोकसभा क्षेत्रों में इसका असर हो सकता है। इससे भाजपा चिंतित है। उसने जरांगे पाटिल के आह्वान का असर कम करने के लिए अपनी पार्टी के नवागंतुक मराठा नेता अशोक चव्हाण को लगा रखा है।
मराठाओं को मनाने में लगे चव्हाण
अशोक चव्हाण मराठवाड़ा के बड़े मराठा नेता हैं। वह आजकल गांव-गांव जाकर मराठा समाज के प्रमुख लोगों से मिलकर उन्हें बता रहे हैं कि अब तक मराठों को जो भी दिया है, भाजपा सरकार ने ही दिया है। मराठों को पहली बार आरक्षण देवेंद्र फडणवीस के पहले मुख्यमंत्रित्वकाल में मिला था। अब दूसरी बार मराठों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने वाली सरकार में भी भाजपा ही सबसे बड़ा दल है।
जालना से भाजपा का ही सांसद
दूसरी ओर, जरांगे पाटिल के गृहनगर जालना से भी भाजपा का ही सांसद है। केंद्र सरकार में मंत्री रावसाहेब दानवे पाटिल यहां से पांच बार जीत चुके हैं। वह छठवीं बार मैदान में हैं। उनसे पहले 1996 और 1998 में भी भाजपा के ही उत्तमराव पवार यहां से जीते थे। 1989 में भी यहां से भाजपा के ही पुंडलिक दानवे जीते थे। इसलिए रावसाहब दानवे भी कहते हैं कि मराठा आंदोलन का असर मतदान पर नहीं पड़ेगा।
क्या है जरांगे की अपील?
मराठों को कुनबी समाज का दर्जा देकर ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण देने के विरोधियों को मराठा समाज हराए।