जन्माष्टमी पर करें राधा रानी को प्रसन्न, मिलेगा व्रत का पूर्ण फल

जन्माष्टमी का त्योहार बेहद पुण्यदायी माना जाता है। हिंदू धर्म में इस दिन का खास महत्व है। जन्माष्टमी भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में हर साल धूमधाम के साथ मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami 2024) भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान कृष्ण के साथ राधा रानी की पूजा बहुत फलदायी होती है।

जन्माष्टमी का दिन हिंदू धर्म में बेहद शुभ माना जाता है। इसे गोकुलाष्टमी, कृष्णाष्टमी, श्रीजयंती के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा का विधान है। यह पर्व हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह व्रत आज यानी 26 अगस्त को रखा जा रहा है। ऐसी मान्यता है कि इस तिथि पर भगवान कृष्ण की पूजा करने से सुख और शांति की प्राप्ति होती है। साथ ही सभी कार्य पूर्ण होते हैं।

वहीं, इस तिथि पर अगर आप कान्हा जी के साथ राधा रानी की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो आपको इस दिन पूजा-पाठ के बाद श्री राधा कपाट स्तोत्र (Shri Radha Kripa Kataksh Stotra ka patha) का पाठ अवश्य करना चाहिए। इससे मुरलीधर और देवी राधा प्रसन्न होती हैं।

।।श्री राधा कपाट स्तोत्र।।

मुनीन्दवृन्दवन्दिते त्रिलोकशोकहारिणी,

प्रसन्नवक्त्रपंकजे निकंजभूविलासिनी।

व्रजेन्दभानुनन्दिनी व्रजेन्द सूनुसंगते,

कदा करिष्यसीह मां कृपा कटाक्ष भाजनम्॥

अशोकवृक्ष वल्लरी वितानमण्डपस्थिते,

प्रवालज्वालपल्लव प्रभारूणाङि्घ् कोमले।

वराभयस्फुरत्करे प्रभूतसम्पदालये,

कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥

अनंगरंगमंगल प्रसंगभंगुरभ्रुवां,

सुविभ्रमं ससम्भ्रमं दृगन्तबाणपातनैः।

निरन्तरं वशीकृत प्रतीतनन्दनन्दने,

कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥

तड़ित्सुवर्ण चम्पक प्रदीप्तगौरविग्रहे,

मुखप्रभा परास्त-कोटि शारदेन्दुमण्ङले।

विचित्रचित्र-संचरच्चकोरशाव लोचने,

कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥

मदोन्मदाति यौवने प्रमोद मानमण्डिते,

प्रियानुरागरंजिते कलाविलासपणि्डते।

अनन्य धन्यकुंजराज कामकेलिकोविदे,

कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥

अशेषहावभाव धीरहीर हार भूषिते,

प्रभूतशातकुम्भकुम्भ कुमि्भकुम्भसुस्तनी।

प्रशस्तमंदहास्यचूर्ण पूर्ण सौख्यसागरे,

कदा करिष्यसीह मां कृपा कटाक्ष भाजनम्॥

मृणाल वालवल्लरी तरंग रंग दोर्लते ,

लताग्रलास्यलोलनील लोचनावलोकने।

ललल्लुलमि्लन्मनोज्ञ मुग्ध मोहनाश्रिते

कदा करिष्यसीह मां कृपा कटाक्ष भाजनम्॥

सुवर्ण्मालिकांचिते त्रिरेख कम्बुकण्ठगे,

त्रिसुत्रमंगलीगुण त्रिरत्नदीप्ति दीधिते।

सलोल नीलकुन्तले प्रसूनगुच्छगुम्फिते,

कदा करिष्यसीह मां कृपा कटाक्ष भाजनम्॥

नितम्बबिम्बलम्बमान पुष्पमेखलागुण,

प्रशस्तरत्नकिंकणी कलापमध्यमंजुले।

करीन्द्रशुण्डदण्डिका वरोहसोभगोरुके,

कदा करिष्यसीह मां कृपा कटाक्ष भाजनम्॥

अनेकमन्त्रनादमंजु नूपुरारवस्खलत्,

समाजराजहंसवंश निक्वणाति गौरवे,

विलोलहेमवल्लरी विडमि्बचारू चक्रमे,

कदा करिष्यसीह मां कृपा कटाक्ष भाजनम्॥

अनन्तकोटिविष्णुलोक नम्र पदम जार्चिते,

हिमद्रिजा पुलोमजा-विरंचिजावरप्रदे।

अपार सिद्धिऋद्धि दिग्ध -सत्पदांगुलीनखे,

कदा करिष्यसीह मां कृपा कटाक्ष भाजनम्॥

मखेश्वरी क्रियेश्वरी स्वधेश्वरी सुरेश्वरी,

त्रिवेदभारतीश्वरी प्रमाणशासनेश्वरी।

रमेश्वरी क्षमेश्वरी प्रमोदकाननेश्वरी,

ब्रजेश्वरी ब्रजाधिपे श्रीराधिके नमोस्तुते॥

इतीदमतभुतस्तवं निशम्य भानुननि्दनी,

करोतु संततं जनं कृपाकटाक्ष भाजनम्।

भवेत्तादैव संचित त्रिरूपकर्मनाशनं,

लभेत्तादब्रजेन्द्रसूनु मण्डल प्रवेशनम्॥

राकायां च सिताष्टम्यां दशम्यां च विशुद्धधीः ।

एकादश्यां त्रयोदश्यां यः पठेत्साधकः सुधीः ॥

यं यं कामयते कामं तं तमाप्नोति साधकः ।

राधाकृपाकटाक्षेण भक्तिःस्यात् प्रेमलक्षणा ॥

ऊरुदघ्ने नाभिदघ्ने हृद्दघ्ने कण्ठदघ्नके ।

राधाकुण्डजले स्थिता यः पठेत् साधकः शतम् ॥

तस्य सर्वार्थ सिद्धिः स्याद् वाक्सामर्थ्यं तथा लभेत् ।

ऐश्वर्यं च लभेत् साक्षाद्दृशा पश्यति राधिकाम् ॥

तेन स तत्क्षणादेव तुष्टा दत्ते महावरम् ।

येन पश्यति नेत्राभ्यां तत् प्रियं श्यामसुन्दरम् ॥

नित्यलीला प्रवेशं च ददाति श्री व्रजाधिपः ।

अतः परतरं प्रार्थ्यं वैष्णवस्य न विद्यते ॥

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