जन्माष्टमी के इस शुभ अवसर पर बस कर ले मुख्य काम, बन जायेंगे सारे बिगड़े और रुके हुए  काम…

सभी लोगो को भगवान कृष्ण के जन्म को लेकर एक अलग ही उत्साह होता है। सभी लोग इस दिन का काफी समय से इंतजार करते है और अपनी भक्ती भावना से भगवान को रिझाने की कोशिश करते है। सभी लोग इसके लिए सुबह से ही भूखे प्यासे होकर भगवान कृष्ण के जन्म का इंतजार करते है और भक्ति और उनके भजनों में इतने लीन हो जाते है कि उन्हें अपनी भूख प्यास का पता भी नहीं होता है उसके बाद ठीक १२ बजे उनके जन्म पर शानदार जश्र के साथ भगवान को दूध से नहलाया जाता है और सभी को प्रसाद दिया जाता है। हर बार हमारें शास्त्रों में ये बताया गया है कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। 

इस दिन इस तरह करें पूजा

आप सभी जानते है कि भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी को आधी रात में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ इसलिए इस दिन रात में व्रत करना चाहिए। अर्द्ध रात्रि में जब आप भगवान श्री कृष्ण की पूजा करें तो उन्हे सबसे पहलें स्नान कराए और स्नान कराते वक्त इस मंत्र का ध्यान करें-

“ऊं यज्ञाय योगपतये योगेश्रराय योग सम्भावय गोविंदाय नमो नम:”

इसके बाद श्री हरि की पूजा इस मंत्र के साथ करें:-

“ऊं यज्ञाय यज्ञेराय यज्ञपतये यज्ञ सम्भवाय गोविंददाय नमों नम:”

इसके बाद श्री कृष्ण को पालने में विराजमान कराए और उन्हें इस मंत्र के साथ सुलाए:- “विश्राय विश्रेक्षाय विश्रपले विश्र सम्भावाय गोविंदाय नमों नम:”

जब आप श्री कृष्ण को सुला दें उसके बाद एक पूजा का चौक और मंडप बनाए और श्रीकृष्ण के साथ रोहिणी और चंद्रमा की भी पूजा करें। उसके बाद शंख में चंदन युक्त जल लेकर, घुटनों के बल बैठकर चंद्रमा को अर्द्ध देकर इस मंत्र का जाप करें:-

जब आप इस कार्य को सम्पन्न कर दें उसकें बाद घी-धूप से आरती करते हुए जयकारा लगाए औऱ प्रसाद ग्रहण करें और सभी को भगवान का प्रसाद दें। प्रसाद की बात करें तो भगवान को इस दिन दहीं,शहद, शक्कर का चर्णामत और धनिया, घी और बूरे का प्रसाद भगवान को बेहद पंसद आता है, जिसे भगवान के चढ़ाने के बाद इसी से व्रत को खोला जाता है। अगर इस जनमाष्टमी आप भी इसी तरह भगवान का व्रत करेगें तो भगवान आपकी भक्ती और श्रद्धा से बेहद प्रसन्न होगें। 

 

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