सुनसान गलियां…। बिल्कुल खामोश। हर तरफ दीवारों पर छर्रों के निशान। कहीं टूटी हुई ईंटें। कहीं पर छत में छेद। घरों के आंगन का टूटा-फूटा फर्श। घरों के बाहर लटक रहे ताले और अंदर गोलों के निशान। कुछ ऐसा मंजर हो गया है 18 हजार की आबादी वाले भारत-पाकिस्तान की सीमा से सटे अरनिया का। पाकिस्तान की गोलाबारी के बाद का जो मंजर गांव में दिख रहा है। वह किसी भी शख्स के होश फाख्ता करने के लिए काफी है। एक बुजुर्ग यशपाल से बात हुई। उन्होंने बताया कि 67 साल से गांव में रह रहे हैं। अब बहुत बुरे हालात हैं। ऐसा तो 1965 और 1971 की जंग में भी नहीं था। उस वक्त भी इतने गोले नहीं पड़े थे। बातचीत के बीच सुनसान गलियों में एकाध लोग आने लगे। ये घरों से अपना सामान लेने के लिए पहुंचे थे। अपने घर के बाहर खड़े अश्विनी ने बताया कि वे अपने रिश्तेदार के घर जा रहे हैं।
पीछे से उसकी मां कमलेश आ गईं। जब गोलाबारी के बारे में पूछा तो वह फफक पड़ीं। कहा कि छोटे-छोटे बच्चे लेकर कहां जाएं? हमारा तो जीना मुश्किल हो गया है। अरनिया की हरी गली में पाकिस्तानी गोलों ने इस कदर तबाही मचाई है कि देख कर समझ सकते हैं कि इस गांव में कोई कैसे रहा होगा। बिजली के तार टूट चुके हैं। बत्ती गुल हो गई है।
सीमा पर 50 हजार लोगों ने छोड़े घर