कोरोना महामारी में देववाणी ने दिलों में बनाई खास जगह, ऑनलाइन कक्षाओं में बढ़ी लोगों की रूचि

 विश्व की सबसे बड़ी आपदा में न सिर्फ लोग योग और आयुर्वेद की ओर लौटें, बल्कि उनके घरों में विश्व की सबसे प्राचीनतम भाषा संस्कृत ने भी खास जगह बनाई। लॉकडाउन और कोरोना काल में घर बैठे काफी लोग ने देव वाणी संस्कृत सीखा या उनके सीखने का क्रम जारी है। ऑनलाइन संस्कृत की कक्षाओं ने भाषा और देशों की दीवारें भी लांघी और यूरोप, अमेरिका, अरब व अफ्रीका तक पहुंची। मनोयोग से लोग संस्कृत को समझा, जाना और अब इसे प्रयोग में ला रहे हैं। इसके माध्‍यम से वह विश्‍व की प्राचीनतम ग्रंथों और वेदों को पढ़ते हुए सनातम धर्म और जीवन पद्धति को जानने की कोशिश में है।

जब हाफ रही पश्‍चिमि चिकित्‍सा पद्धति तब योग से लोग हो रहे निरोग

संकट की इस घड़ी में संस्कृत के प्रति लगाव अपनी जड़ों की ओर लौटने का संकेत है। तो, विश्व भी इस कठिन वक्त में भारतीय पद्धति को आशाभरी नजरों से देख रहा है। इस कोरोना महामारी के सामने सारी पश्चिमी चिकित्सा पद्धति हाफ रही हैं, जबकि योग और आयुर्वेद इसके सामने मजबूती से खड़ा है और लोग इसका साथ लेकर कोरोना को मात भी दे रहे हैं। ऐसे में संस्‍कृत के प्रति प्रेम उमड़ना लाजमी हैैै।

50 हजार से ज्‍यादा लोगों ने संस्‍कृत भाषा से हुए परिचित

संस्कृत भाषा की तरफ लोगों की रूचि बढ़ाने में वर्षों से जुटी संस्कृत भारती ने लॉकडाउन से अब तक 50 हजार से अधिक भारतीयों को संस्कृत भाषा से परिचित और प्रगाढ़ कराया है। 17 देशाें से भी कोई 3000 लोग वेदों की इस भाषा के जानकार हुए हैं। अभी भी ऑनलाइन अभियान जारी है। स्कूल-कालेज न खुलने से घर बैठे छात्र-छात्राओं को संस्कृत में निपुण बनाया जा रहा है।

जेएनयू और आइआइटी रूड़की भी जुड़े

प्राचीनतम भाषा को आधुनिक शिक्षा के प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय और आइआइटी रूड़की का भी साथ मिला। इन दोनों उच्‍च शिक्षण संस्‍थानों के साथ मिलकर संस्‍कृत भारती लॉकडाउन और कोरोना काल में ऑनलाइन संस्कृत की कक्षाएं लगा रही है। जेएनयू की ऑनलाइन कक्षा में 5000 छात्रों ने संस्कृत को जाना-समझा तो आइआइटी रूड़की में 7000 युवाओं की कक्षाएं चल रही है। रूड़की की कक्षाओं का समापन इसी रविवार को होगा।

10 दिन से ढाई माह तक की कक्षाएं

संस्कृत भारती के अखिल भारतीय महामंत्री श्रीश देवपुजारी ने बताया कि ये कक्षाएं 10 दिन से लेकर ढाई माह (तकरीबन 45 दिन) तक की है। इसमें संस्कृत बोलना, पढ़ना, शास्त्र शिक्षण, वेदांत, न्याय शास्त्र, गीता, संक्षेप रामायण पाठ, सुभाषितम,नीति शतक्, ऋतु संहार व भाषण देना जैसी गतिविधियां है। तकरीबन 3000 से अधिक शिक्षक लोग वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्‍यम से समूहों में लोग को संस्कृत में पारंगत कर रहे हैं। घर बैठे छात्रों के लिए अलग से बाल केंद्र नाम से ऑनलाइन कक्षाएं लग रही है। महिलाओं और पारिवारिक कक्षाएं भी हैं। कुल मिलाकर मार्च अंत से अब तक भारत में 50 हजार से अधिक लोगों को संस्कृत की शिक्षा दी जा चुकी है।

विदेशियों में भी संस्कृत की रूचि

श्रीश देवपुजारी कहते हैं कि संस्कृत की कक्षाओं में देश, भाषा और मजहब का कोई लेना देना नहीं है। अमेरिका, ब्रिटेन, मारिशस, अरब देशों समेत कुल 17 देशों के लोग भी ऑनलाइन संस्कृत की कक्षाओं में रूचि ले रहे हैं। अभी तक तीन हजार से अधिक विदेशी संस्कृत सीख रहे हैं। वह कहते हैं कि इसके पहले उन्होंने संस्कृत के प्रति देश-विदेश में लोग का इतना लगाव नहीं देखा।

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