चीन या कोई दूसरा पड़ोसी राष्ट्र हमारे सीमावर्ती इलाकों में रह रहे लोगों को आंख नहीं दिखा सकेगा। केंद्र सरकार ने इसके लिए भारी भरकम बजट राशि जारी की है, बल्कि केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को सिविल प्रशासन की एक जिम्मेदारी भी सौंप दी है। सीमा के कई हिस्सों से ऐसी खबरें आती रही हैं कि फलां देश के सैनिक वहां रह रहे लोगों को डराते धमकाते हैं। इसके पीछे उनका मकसद होता है कि वहां के लोग सीमा से सटे गांव छोड़कर पीछे चले जाएं।
पड़ोसी राष्ट्र की यह सोच होती है कि सीमा के आसपास जब स्थानीय लोग नहीं होंगे तो वे अपनी रणनीति को आसानी से आगे बढ़ा सकते हैं। सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों तक केंद्र सरकार की सभी योजनाएं ठीक तरह से नहीं पहुंच पाती, इसके चलते बहुत से लोग वहां से पलायन करने की सोचने लगते हैं। केंद्रीय अर्धसैनिक बल, ऐसे इलाकों में घर-घर जाकर लोगों को केंद्र सरकार की योजनाओं की जानकारी देंगे। केवल जानकारी ही नहीं, बल्कि वे यह सर्वे भी करेंगे कि उन लोगों तक केंद्र की योजनाओं का फायदा क्यों नहीं पहुंच रहा है। साथ ही इन बलों के जवान उन इलाकों में पड़ोसी देशों के उन मुखबिरों पर भी नजर रखेंगे, जो सीमावर्ती इलाक़ों में रह रहे लोगों को गुमराह कर वहां से जाने के लिए उकसाते हैं।
केंद्र सरकार ने तकरीबन सभी सीमाओं पर यह काम शुरू कर दिया है। विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक चीन से लगती सीमा पर होने वाली संदिग्ध गतिविधियां, उत्तर पूर्व के राज्यों में स्थित अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के आसपास के इलाकों पर दूसरे राष्ट्रों के संगठनों की नजर और पाकिस्तान, नेपाल व बांग्लादेश सीमा से लगते कुछ इलाकों में स्थानीय लोगों की परेशानी सामने आई थी। इनके अलावा कश्मीर और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भी स्थानीय लोगों को सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं मिल पाता। वहां भी नक्सलियों का यह प्रयास रहता है कि स्थानीय लोग, सरकार से नाराज रहें। वे सरकार के खिलाफ आवाज उठानी शुरू करें। अगर इन इलाकों में सरकारी योजना पहुंचाने का प्रयास होता है तो उसमें भी नक्सली बाधा डालते हैं।
केंद्र सरकार ने अब इसका हल तलाश लिया है। इसके लिए बजट की कमी नहीं रहेगी। पिछले छह साल में ऐसे इलाकों के लिए केंद्र सरकार की तरफ से एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि खर्च की जा चुकी है। सरकार का मकसद है कि सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों का जीवन स्तर बेहतर हो। उन तक हर बुनियादी सुविधा पहुंचे।
अभी तक ऐसे इलाकों की जो रिपोर्ट मिलती रही हैं, उसके अनुसार, संबंधित राज्य सरकार भी सीमावर्ती लोगों के विकास पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाती। इसके पीछे कई तरह के कारण बताए गए हैं। इनमें राजनीतिक, सामाजिक और भय का माहौल जैसे कारक शामिल हैं। कई बार इन इलाकों का विकास इसलिए भी नहीं हो पाता कि वहां का क्षेत्र बहुत ज्यादा विस्तृत होता है, जबकि लोगों की संख्या या वोट देखें तो वह प्रतिशत अधिक नहीं होता। ऐसे में जन प्रतिनिधि भी उन इलाकों की तरफ ज्यादा ध्यान लगाते हैं, जहां कम विस्तृत इलाका हो और आबादी इतनी सघन हो कि यातायात के साधन भी ठीक से न चल सकें।
इसका नतीजा यह होता है कि स्थानीय प्रशासन भी ऐसे इलाकों से मुंह मोड़ने लगता है। आतंकी, नक्सली और पड़ोसी देशों के लोग इसी बात का फायदा उठाने लगते हैं। वहां रहने वाले लोगों के दिमाग में यह बात बिठाने का प्रयास होता है कि सरकार इस क्षेत्र के विकास पर कोई ध्यान नहीं दे रही। इसके अलावा कई तरह का दुष्प्रचार किया जाता है।
केंद्र सरकार का प्रयास है कि इन इलाकों में रहने वाले लोगों को हर योजना का लाभ मिले। यही वजह है कि केंद्रीय अर्धसैनिक बल, अब इस दिशा में काम करेगी। ये बल बतौर नोडल एजेंसी के तहत सरकारी योजनाओं और उनके क्रियान्वयन पर नजर रखेंगे। सीमावर्ती इलाकों में हर घर का एक रजिस्टर तैयार होगा। कौन सी योजना वहां तक पहुंची है और कौन सी नहीं। इसकी सर्वे रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्रालय को सौंपी जाएगी। खास बात है कि इस रिपोर्ट पर तुरंत कार्रवाई होगी।