उन्नाव दुष्कर्म केस के आरोपी भाजपा के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर उन्नाव की सियासत में एक बड़ा नाम है। राजधानी लखनऊ से लगभग 63 किलोमीटर दूर स्थित उन्नाव ब्राह्मण बहुल इलाका है। यहां पर सेंगर सबसे कद्दावर राजपूत हैं। जानकारों का कहना है कि उन्नाव के सेंगर जिले के ठाकुरों को एकजुट करने वाले नेताओं और बहुबलियों में शुमार है। कांग्रेस पार्टी से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाले कुलदीप ने खुद को उन्नाव में एक नहीं चार बार बाहुबली विधायक के रूप में स्थापित किया। रूतबा ऐसा बनाया कि जिस पार्टी से भी चुनाव लड़े उसी से उनकी जीत पक्की रही।
ग्राम पंचायत से विधायक बनने तक का सफर
कुलदीप सिंह सेंगर का राजनीतिक सफर ग्राम पंचायत की सियासत से शुरू हुआ था। कुलदीप ने सबसे पहले अपनी जन्मस्थली माखी गांव की ग्राम पंचायत से सियासत शुरु की। माखी गांव उन्नाव जिले की सबसे बड़ी ग्राम पंचायतों में शामिल है। एक बार गांव के प्रधान चुन लिए जाने के बाद उन्होंने युवा कांग्रेस से सक्रिय राजनीति में कदम रखा। सक्रिय राजनीति में कदम रखने के बाद कुलदीप ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
एक बार राजनीति का चस्का लग जाने के बाद उन्होंने सभी राजनीतिक दलों में अपनी पैठ बनाई, सभी से अच्छे रिश्ते कायम किए, उसके बाद दलों में अपनी अच्छी पैठ और संबंधों के बूते वो लगातार चार बार विधायक का चुनाव जीते। वर्तमान में भी कुलदीप उन्नाव के बांगरमऊ विधानसभा से विधायक हैं। कुलदीप के छोटे भाई मनोज सिंह 2005 से 2010 तक मियागंज ब्लॉक के प्रमुख रहे। उनको ब्लाक प्रमुख बनवाने में भी उनकी भूमिका रही।
सपा से लड़े फिर की बगावत
कुलदीप ने साल 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा के टिकट पर भगवंतनगर से चुनाव लड़ा, वहां से वो विधायक निर्वाचित हुए। 2016 में सपा में रहते हुए पार्टी से बगावत करके जिला पंचायत चुनाव में अपनी पत्नी संगीता सेंगर को मैदान में उतार दिया। सपा में रहते हुए उन्होंने पार्टी के घोषित प्रत्याशी के खिलाफ पत्नी को न सिर्फ चुनाव लड़ाया बल्कि जीत भी हासिल की। विधानसभा चुनाव से पहले जनवरी 2017 में कुलदीप सिंह ने भाजपा का दामन थाम लिया।
आचार संहिता के उल्लंघन के मुकदमे के बाद सीधे दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज
कुलदीप की गिनती उन्नाव इलाके में एक बाहुबली नेता के रुप में होती है। उनके ऊपर चुनाव के समय आचार संहिता उल्लंघन के मुकदमे को छोड़ दिया जाए तो उनके ऊपर दूसरा मुकदमा दुष्कर्म का दर्ज हुआ। उन पर ये मुकदमा रायबरेली में दर्ज हुआ था। इतने बड़े राजनीतिक सफर में पहली बार अप्रैल 2018 में उन पर किशोरी से दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज हुआ था। तब पहली बार उनका नाम पुलिस की केस डायरी में चढ़ा था। हालांकि शहर व जिले की कई आपराधिक घटनाओं में उनकी शह या उनके गुर्गों के शामिल होने की बात सामने आई, लेकिन किसी ने रिपोर्ट नहीं दर्ज कराई। कुलदीप सिंह को राजनीतिक प्रतिद्वंदियों और विरोधियों को शिकस्त देने में माहिर माना जाता हैं।
25 साल में खड़ा किया सियासी साम्राज्य
ये कुलदीप का राजनीतिक रसूख ही कहा जाएगा कि दुष्कर्म की रिपोर्ट दर्ज होने, जेल जाने और सीबीआई की जांच जारी होने के बाद भी उनका क्षेत्र में दबदबा कायम रहा। यही नहीं इस मुद्दे पर गैर भाजपाई दलों के घेरने पर अब कुलदीप के भाजपा से निलंबन की कार्रवाई हुई है। विधायक का उनका दर्जा बरकरार है। कुलदीप सेंगर के पिता मुलायम सिंह मूल रूप से फतेहपुर जिले के निवासी थे।
पारिवारिक पृष्ठभूमि
कुलदीप के नाना वीरेंद्र सिंह का कोई बेटा नहीं था। केवल दो बेटियां चुन्नी देवी और सरोजनी देवी ही हैं। चुन्नी देवी शादी के बाद से अपने परिवार समेत पिता के साथ रहने लगीं। उन्हीं के चार बेटों में कुलदीप सबसे बड़े, मनोज दूसरे नंबर के और अतुल तीसरे नंबर के हैं। कुलदीप के सबसे छोटे भाई विपुल सिंह की करीब दस साल पहले बीमारी से मौत हो गई थी। कुलदीप समेत सभी भाइयों का जन्म ननिहाल के गांव में हुआ।
जेल जाने के बाद भी कायम रहा रसूख और क्षेत्र में दबदबा
कुलदीप सिंह 1996 में पहली बार ग्राम प्रधान चुने गए। इसके बाद पांच साल के दो कार्यकाल में माता चुन्नी देवी प्रधान रहीं। मौजूदा समय में छोटे भाई अतुल सिंह की पत्नी अर्चना सिंह ग्राम प्रधान हैं। वर्ष 2002 में कुलदीप ने बसपा से उन्नाव सदर सीट से पहली बार सक्रिय राजनीति में कदम रखा और विधायक चुने गए। 2007 में उन्होंने सपा का दामन थामा और बांगरमऊ से विधायक बने।