पंजाब विधानसभा का मानसून सत्र दो अगस्त से शुरू होने जा रहा है। इस सत्र में भले ही तीन सिटिंग होनी है, लेकिन दो तिहाई बहुमत वाली कांग्रेस को बैक फायर की चिंता सता रही है। विपक्ष जहां सरकार पर सत्र को लंबा करने का दबाव बना रहा है कांग्रेस सरकार को विपक्ष से ज्यादा इसकी चिंता है कि अपने ही विधायक कहीं विपक्ष को मुद्दा न दे दें।
खास कर कैबिनेट से इस्तीफा दे चुके नवजोत सिंह सिद्धू इस समय मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से नाराज चल रहे हैैं। उन पर सभी की नजरेंं हैैं। यही कारण है कि सत्र से पहले कांग्रेस अपने विधायकों को साधने में जुट गई है।
सिद्धू के इस्तीफे के बाद सरकार अमृतसर के विधायकों की गोलबंदी करने में जुटी हुई है, क्योंकि कैबिनेट से इस्तीफे के बाद उन्होंने अमृतसर में अपने हलके में सक्रियता बढ़ा दी है। सरकार की चिंता इस बात को लेकर भी है कि सिद्धू का इस्तीफा स्वीकार करने के बाद कांग्रेस के किसी भी मंत्री या विधायक ने मुख्यमंत्री के फैसले का स्वागत नहीं किया था। इस्तीफे के बाद से कांग्रेस के एक बड़े वर्ग में खामोशी भी छाई हुई है।
सबकी नजर इस पर भी लगी हुई है कि नवजोत सिद्धू विधानसभा की कार्यवाही में हिस्सा लेते हैैं या नहीं? कांग्रेस की चिंता यह भी है कि अगर सिद्धू सदन में आते हैं और पहले की तरह ही आक्रामक रुख अपनाते हैं तो सरकार की किरकिरी हो सकती है। सरकार सिद्धू के रुख को भांपने की कोशिश कर रही है।
सरकार को यह पता है कि सिद्धू मानसून सत्र में भी सरकार के लिए परेशानी खड़ी कर सकते हैं। यही कारण है कि कांग्रेस विधायक डॉ. राजकुमार वेरका सिद्धू से मिलने पहुंचे थे। यह अलग बात है कि वेरका ने इस मुलाकात को औपचारिक बताया था।
विपक्ष का दबाव, सरकार तैयार नहीं
विपक्ष कांग्रेस सरकार पर दबाव बना रहा है कि वह सत्र को लंबा करे। महत्वपूर्ण बात यह है कि पंजाब में सत्ता बदलने के बावजूद विधानसभा सत्र को लेकर कुछ भी नहीं बदला है। कांग्रेस जब विपक्ष में थी तो वह सत्र छोटा होने का आरोप लगाती थी। यहां तक कि कांग्रेस के विधायकों ने विधानसभा के अंदर ही रात गुजारी।
तब अकाली दल कामकाज नहीं होने की बात करता था। सत्ता बदलने के बाद अब अकाली दल सत्र बड़ा करने का दबाव बना रहा है और कांग्रेस सरकार कामकाज नहीं होने की बात कह रही है। आम आदमी पार्टी भी सत्र को लेकर अकाली दल के साथ नजर आ रही है।
अमन अरोड़ा ने पेश किया आंकड़ा
आप विधायक अमन अरोड़ा ने आंकड़ों का हवाला देते हुए सदन की तस्वीर पेश की है। उन्होंने कहा कि 12.6 साल में विधानसभा की महज सौ बैठकें हुईं और 362 घंटे ही कामकाज हुआ। नियमानुसार एक साल में 40 बैठकें होनी चाहिए, लेकिन सरकार सत्र को बढ़ाने के मूड में दिखाई नहीं दे रही है।