कब और क्यों मनाया जाता है रोहिणी व्रत?

रोहिणी व्रत का संबंध रोहिणी नक्षत्र से माना गया है। जब सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र प्रबल होता है तभी यह व्रत किया जाता है। जैन धर्म में इस व्रत को विशेष महत्व दिया जाता है। इस माह में रोहिणी व्रत 27 अगस्त मंगलवार के दिन किया जाएगा। ऐसे में चलिए जानते हैं रोहिणी व्रत से जुड़ी कुछ जरूरी बातें और इसके कुछ जरूरी नियम।

जैन धर्म में रोहिणी व्रत को एक त्योहार की तरह ही मनाया जाता है। यह व्रत जैन धर्म के प्रमुख व्रत-त्योहारों में से एक है, जिसे लेकर यह माना जाता है कि इस व्रत करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के दुख-दर्द से मुक्ति मिल सकती है। मुख्य रूप से महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-शांति की कामना के साथ इस व्रत को करती हैं।

इस तरह करें पूजा

सुबह जल्दी उठकर पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
आचमन कर व्रत का संकल्प धारण करें और सूर्यदेव को अर्घ्य दें।
पूजा स्थल की साफ-सफाई के बाद भगवान वासुपूज्य की वेदी के साथ मूर्ति स्थापित करें।
भगवान को फल-फूल, गंध, दूर्वा, नैवेद्य आदि अर्पित करें।
सूर्यास्त से पहले पूजा-पाठ कर फलाहार करें।
अगले दिन पूजा-पाठ करने के बाद अपने व्रत का पारण (व्रत खोलना) करें।

हो सकती है मोक्ष की प्राप्ति
जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार, रोहिणी व्रत करने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही यह व्रत पति की लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली के लिए भी किया जाता है। इस व्रत को पूरे विधि-विधान के साथ करने से व्यक्ति को धन की समस्या भी नहीं सताती। जैन धर्म में इस व्रत को मोक्ष की प्राप्ति का माध्यम भी माना गया है।

ध्यान रखें ये बातें
रोहिणी व्रत के दौरान व्यक्तिगत स्वच्छता और शुद्धता का जरूरी रूप से ध्यान रखना चाहिए, तभी आपका व्रत सफल माना जाता है। इस व्रत में सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं किया जाता है। रोहिणी व्रत को लगातार 3, 5 या 7 वर्षों में तक करना होता है, इसके बादी ही इसका उद्यापन किया जाता है। अगर आप रोहिणी व्रत का उद्यापन कर रहे हैं, तो इसके लिए गरीबों व जरूरतमंदों को दान आदि जरूर करना चाहिए, साथ ही उन्हें भोजन भी कराना चाहिए।

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