सोमवार को दोपहर बाद यमुनोत्रीधाम में सीजन की पहली बर्फबारी हुई। धाम पहुंचे भक्तों ने बर्फबारी का खूब आनंद उठाया। वहीं अब बर्फबारी की वजह से धाम में ठंड बढ़ गई है। बर्फबारी से बढ़ी ठंड का असर उत्तराखंड के मैदानी इलाकों में भी देखा जा रहा है। अभी कुछ दिन पहले ही केदारनाथ में भी बर्फबारी हुई थी।
धारचूला (पिथौरागढ़) में शीतकाल शुरू होते ही भेड़पालक चीन सीमा से सटे बुग्यालों से घाटियों की ओर लौटने लगे हैं। उच्च हिमालयी क्षेत्रों से लौटकर भेड़पालक भेड़ों को लेकर अब तराई भाबर के जंगलों में जाएंगे। धारचूला के व्यास और दारमा घाटियों के 21 गांवों के लोग हर साल माइग्रेशन पर उच्च हिमालयी क्षेत्रों में स्थित अपने मूल गांवों में जाते हैं।
इन गांवों में से अधिकांश ग्रामीणों का व्यवसाय ऊनी कारोबार से जुड़ा होने के कारण भेड़ पालन भी करते है। भेड़पालक हर साल बर्फ पिघलते ही प्रवास पर उच्च हिमालयी क्षेत्रों का रुख करते हैं। इसके बाद अक्तूबर तक प्रवास पर हिमालयी क्षेत्रों में स्थित बुग्यालों में भेड़ें चराते हैं। इस दौरान भेड़पालक चीन सीमा के निकटवर्ती बुग्यालों तक जाते हैं। व्यास घाटी में ज्योलिंगकांग और दारमा घाटी में पंचाचूली की तलहटी तक पहुंच जाते हैं
जैसे ही अक्तूबर से बर्फबारी शुरू होती है भेड़पालक भेड़ों के साथ निचले इलाकों को लौटने लगते हैं। शीतकाल में सभी भेड़ पालक तराई भाबर के जंगलों में रहते हैं। भेड़पालक मान सिंह ने बताया कि वह तिदांग के ढाबे बुग्याल से भेड़ों के साथ 10 दिन में धारचूला पहुंचे हैं। अब एक माह में तराई के जंगलों में पहुंच जाएंगे। भेड़पालक हाइवे में ट्रैफिक कम होने पर रात में चलना अधिक पसंद करते हैं।