कोरोना वायरस के संक्रमण से लोगों में साइटोकाइन स्टॉर्म का खतरा बढ़ रहा है. ये एक ऐसी कंडीशन है जिसमें इंसान को कोरोना होने पर उसे ‘मल्टीपल ऑर्गेन फेलियर’ की शिकायत हो जाती है. यानी शरीर के प्रमुख अंग काम करना बंद कर देते हैं. कई मामलों में इंसान की मौत भी हो जाती है. आइए आपको बताते हैं कि साइटोकाइन स्टॉर्म क्या है और कोरोना में ये कैसे शरीर पर हमला करता है.
साइटोकाइन हमारी बॉडी के सेल्स यानी कोशिकाओं के अंदर एक तरह का प्रोटीन होता है. ये हमारे इम्यूनिटी रिस्पॉन्स सिस्टम का हिस्सा होता है, जो बाहरी रोगजनक वायरसों से हमारा बचाव करता है. साइटोकाइन स्टॉर्म का खतरा तब बढ़ता है जब हमारा इम्यून सिस्टम अनियंत्रित होकर साइटोकाइन का ज्यादा प्रोडक्शन करने लगता है.
शरीर में बढ़े हुए साइटोकाइन हमारी ही कोशिकाओं पर हमला करना शुरू कर देते हैं जिससे उन पर बुरा असर पड़ता है और शरीर के कई अंग काम करना बंद कर देते हैं. आसान भाषा में कहें तो ये हमारे इम्यून को ही शरीर का दुश्मन बना देता है. ऐसा होने पर अक्सर शरीर में ऑक्सीजन की कमी भी होने लगती है और जान को खतरा भी बढ़ जाता है.
शरीर पर कितना असर– डॉक्टर्स कहते हैं कि शरीर में साइटोकाइन के बढ़ने से दिल की धड़कनें अनियंत्रित हो सकती हैं और हार्ट अटैक की संभावना सकती है. ये थ्रोम्बोसिस यानी रक्त वाहिकाओं में ब्लड क्लॉट की समस्या भी उत्पन्न कर सकता है. डॉक्टर्स कहते हैं कि कोरोना मरीजों में इसकी संभावना दूसरे सप्ताह में सबसे ज्यादा होती है.
इस दौरान मरीज की हालत ज्यादा बिगड़ने पर उसे स्टेरॉयड देने की सख्त जरूरत होती है. मरीज की हेल्थ को लगातार मॉनिटर किया जाना चाहिए. यदि ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल लगातार नीचे जा रहा है तो तुरंत डॉक्टर को इसकी जानकारी देनी चाहिए. हालांकि इंफेक्शन के पहले चरण में हल्के लक्षण दिखने पर ऐसा नहीं किया जाना चाहिए.
एक्सपर्ट्स मानते हैं कि साइटोकाइन स्टॉर्म कोरोना मरीजों के लिए बेहद घातक साबित हो सकता है. हालांकि इसे लेकर अभी तक कोई बड़ी स्टडी नहीं की गई है. कोरोना संक्रमित कई मरीजों में साइटोकाइन स्टॉर्म शुरू होने के बाद उनकी हालत को तेजी से बिगड़ते देखा गया है. डॉक्टर्स का मानना है कि कोरोना से लगातार हो रही मौतों के पीछे साइटोकाइन स्टॉर्म की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है.