“ना खाऊँ ना खाने दूँ “बस इसी तर्ज़ पर आप पार्टी के नेता दिलवाली दिल्ली की राजनीति मे और इंडियन सोसाइटी मे सन 2011 से अफ़रा-तफ़री करते आ रहे हैं। मफ़्लर मेन अरविंद भाऊ की तारीफ मे ये पंक्तियाँ सटीक बैठती है कि “हम अकेले ही चले थे जानिब-ए-मंज़िल,मगर लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया”और केजरी बाबू के इसी जिद्धी जुनून के चलते दिल्लीवालों ने दिल्ली को एक नहीं दो बार खोखली खांसी के जनक केजरू के हवाले कर दिया। दिल्ली की चतुरनाड़ जनता भाऊ की फ़िक्शन फिल्म के झूटे वादों और इरादों के चलचित्र मे ऐसी वशीभूत हुई कि फिर निकल न पाई और दिल्ली का समूचा पोलीवूड सनकी सिलेन्डर के हवाले कर दिया। केजरी बाबू की अब तलक की नौटंकी और करतूतों पर प्रकाश डालें तो बस “बाबाजी का ठुल्लू” दृष्टिपटल पर हो-हल्ला करता हुआ नजर आता है।
बैचारे बुजुर्ग अन्ना के कंधे पर बैठकर उनके पाक इरादों पर पानी फेर दिया और “नंगा नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या” कि तर्ज़ पर सारा क्रेडिट खुद ले लिया। अन्ना से अलग-थलग होकर अपनी राजनीतिक पार्टी बना ली,जिसका नाम तो “आम आदमी पार्टी” रखा गया मगर पार्टी मे धड़ल्ले से बइमानो और रईसजादों की घुसपैठ करवाई गई। फिर शुरू हुआ विपक्ष और बीजेपी को मुद्दों पर घेरने का नया तांडव, सोनिया, राहुल, दीक्षित मैडम, वाड्रा, मनमोहन, मोदी, किरण, अडाणी-अंबानी, दिल्ली पुलिस, DMC, हाइ कोर्ट, जंग के साथ जंग और जाने कौन-कौन।
पाक दामन और साफ छवि के ऐसे-ऐसे तीर छोड़े गए की दिल्ली ही नहीं बल्कि समूचा हिंदुस्तान मफ़्लर मेन का क़ायल हो गया। पर कहते हैं कि पाप का घड़ा जब भर जाता है तो वह छलकता नहीं बल्कि फूट जाता है, और आज जो कुछ भी आप पार्टी मे खुराफ़ात हो रही है वो जग जाहीर है। पार्टी की नौटंकी मे अहम किरदार निभाया है “एजेंट केजरू” ने और सहायक अभिनय के ड्रामेबाज़ हैं बालिका साज़िया,सोमनाथ बाबूजी,क्राइंग मेन आशुतोष,मासूम मनीष,जितेंद्र झूठा आदि।
कुछ भूषण जैसे भावुक,अयोगी योगेंद्र और बिन्नी बाबू जैसे किरदारों को फिल्म के फ़र्स्ट हाफ के पहले सीन मे ही बिना पगार के निकाल दिया गया। दिल्ली मे विकास के घोड़े भी लंगड़ा गए है जब से नखशिकांत ईमानदारी की बात करनेवाला मानुष दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुआ है। दिल्लीवालों अब झेलते रहो इस अधेड़ उम्र के नौटंकिबाज,ईन्नोसेंट और चालबाज़ को अगले पाँच साल तक। इस भाऊ की नौटंकी पर जितना भी व्यंग करो और तान कसो कम है, दिल्ली की जनता के लिए तो बस यही कहा जा सकता है कि “अब पछताए का होत,जब चिड़िया चुग गई खेत”।