केरल के रहने वाले गोपालन चंद्रन साल 1983 में बहरीन नौकरी की तलाश में गए थे। 2025 में 42 साल के बाद वो भारत लौट रहे हैं। प्रवासी लीगल सेल (PLC) ने सोशल मीडिया पर एक भावुक पोस्ट में बताया कि गोपालन चंद्रन केरल के पौडिकोनम के पास एक छोटे से गांव के रहने वाले हैं।
गोपालन चंद्रन ने 1983 में बेहतर रोजगार की तलाश में बहरीन का रुख किया था। लेकिन जैसे ही गोपाल वहां पहुंचे, उनको बहरीन बुलाने वाले शख्स की मौत हो गई और उनका पासपोर्ट भी गुम हो गया।
दस्तावेज़ हुए गुम
पासपोर्ट खो जाने के बाद गोपालन चंद्रन किसी भी आधिकारिक रिकॉर्ड से बाहर हो गए। बिना किसी पहचान और बिना किसी सहारे के एक परदेश में बिना कागज़ों के जीना गोपालन चंद्रन के लिए किसी सज़ा से कम नहीं था।
प्रवासी लीगल सेल बनी फरिश्ता
प्रवासी लीगल सेल, जो सेवानिवृत्त जजों, वकीलों और पत्रकारों का एक संगठन है उसने गोपालन की मदद के लिए आगे आई और उनकी कहानी दुनिया के सामने लाने की ठानी।
भारतीय दूतावास और बहरीन सरकार का सहयोग
PLC की टीम ने बहरीन में भारतीय दूतावास और वहां के इमिग्रेशन विभाग से संपर्क साधा। वर्षों पुरानी नौकरशाही की उलझनों को हल करते हुए उन्होंने गोपालन चंद्रन को कानूनी पहचान दिलाई, उन्हें रहने के लिए जगह और चिकित्सा सेवा मुहैया कराई और उनके परिवार से संपर्क स्थापित किया।
मां से मिलने का सपना आखिरकार हुआ पूरा
42 साल बाद गोपालन चंद्रन की 95 वर्षीय मां जो अब भी हर रोज अपने बेटे के लौटने की दुआ करती थीं अब उन्हें अपनी आंखों से देख पाएंगी। PLC ने पोस्ट कर लिखा, “आज सुबह गोपालन ने अपने वतन के लिए फ्लाइट पकड़ी। उनके पास कोई सामान नहीं था सिर्फ यादें, आंसू और अपनों से मिलने की उम्मीद थी।”
PLC ने अपने पोस्ट के अंत में लिखा, “ये कहानी सिर्फ एक आदमी की नहीं है, बल्कि लाखों प्रवासियों की उम्मीद की कहानी है, जो अब भी अंधेरे में इंतजार कर रहे हैं। गोपालन, तुम्हारा वतन तुम्हारा इंतजार कर रहा था।”
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