इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे खाना बनाकर ब्राह्मणों को खिलाना चाहिए इसके बाद खुद खाना चाहिए। भोजन के समय पूर्व दिशा की ओर मुंह रखना चाहिए। शास्त्रों में बताया गया है कि भोजन के समय थाली में आंवले का पत्ता गिरे तो यह बहुत ही शुभ होता है। थाली में आंवले का पत्ता गिरने से यह माना जाता है कि आने वाले साल में व्यक्ति की सेहत अच्छी रहेगी।
कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी कहा जाता है। माना जाता है कि इसी दिन मां लक्ष्मी ने भूलोक पर भगवान विष्णु और शिव जी आंवले के रूप में एक साथ पूजा की और इसी पेड़ के नीचे बैठकर खाना भी खाया। इस बार यह पर्व 17 अक्टूबर को है। कहा जाता है कि इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठने और खाना खाने से कष्ट दूर हो जाते हैं।
इसकी पीछे है एक कथा
आंवले के पेड़ की पूजा और इसके नीचे भोजन करने की प्रथा माता लक्ष्मी ने शुरू की थी। एक कथा के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण करने आई। रास्ते में उन्हें भगवान विष्णु और शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। लक्ष्मी मां ने विचार किया कि एक साथ विष्णु और शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तभी उन्हें ख्याल आया कि तुलसी और बेल का गुण एक साथ आंवले में पाया जाता है।
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तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है और बेल शिव को। आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिन्ह मानकर मां लक्ष्मी ने आंवले की वृक्ष की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन करवाया। इसके बाद स्वयं भोजन किया। इसी समय से यह परंपरा चली आ रही है।