सुप्रीम कोर्ट अल्पसंख्यक की परिभाषा और अल्पसंख्यकों की पहचान के दिशा-निर्देश तय करने की मांग पर सोमवार को सुनवाई करेगा। भाजपा नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने जनहित याचिका दाखिल कर सिर्फ वास्तव में अल्पसंख्यकों को अल्पसंख्यक संरक्षण दिए जाने की मांग की है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ मामले पर सुनवाई करेगी।
याचिका में मांग की गई है कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम की धारा 2(सी) को रद्द किया जाए, क्योंकि यह धारा मनमानी, अतार्किक और अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करती है। इस धारा में केंद्र सरकार को किसी भी समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित करने के असीमित और मनमाने अधिकार दिए गए हैं।
तीसरी मांग है कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह अल्पसंख्यक की परिभाषा तय करे और अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशा-निर्देश बनाए। ताकि यह सुनिश्चित हो कि सिर्फ उन्हीं अल्पसंख्यकों को संविधान के अनुच्छेद 29-30 में अधिकार और संरक्षण मिले जो वास्तव में धार्मिक और भाषाई, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप से प्रभावशाली न हों और जो संख्या में बहुत कम हों।
याचिका में सुप्रीम कोर्ट के टीएमए पई मामले में दिए गए संविधान पीठ के फैसले का हवाला देते हुए कहा गया है कि अल्पसंख्यक की पहचान राज्य स्तर पर की जाए न कि राष्ट्रीय स्तर पर। क्योंकि कई राज्यों में जो वर्ग बहुसंख्यक हैं, उन्हें अल्पसंख्यक का लाभ मिल रहा है।
यहां मुसलमान बहुसंख्यक हैं
यहां ईसाई हैं बहुसंख्यक
- यह भी कहा गया है कि ईसाई मिजोरम, मेघालय, नगालैंड में बहुसंख्यक हैं जबकि अरुणाचल प्रदेश, गोवा, केरल, मणिपुर, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में भी इनकी संख्या अच्छी है। इसके बावजूद ये अल्पसंख्यक माने जाते हैं। यहां सिख हैं बहुसंख्यक इसी तरह पंजाब मे सिख बहुसंख्यक हैं जबकि दिल्ली, चंडीगढ़, और हरियाणा में भी अच्छी संख्या में हैं लेकिन वे अल्पसंख्यक माने जाते हैं।