अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर के निर्माण में बाजार में मिलने वाले सीमेंट उपयोग नहीं किया जाएगा: चंपत राय

में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर बनाने की कार्यवाही अब आगे बढ़ने लगी है. 3 सितंबर को अयोध्या विकास प्राधि‍करण ने ‘श्री रामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट’ के सचिव और विश्व हिंदू परिषद के नेता चंपत राय को राम मंदिर का स्वीकृत मानचित्र सौंप दिया. इससे पहले अयोध्या विकास प्राधि‍करण ने 2 सितंबर को बोर्ड बैठक में राम मंदिर के प्रस्तावित नक्शे को पास कर दिया था.

बोर्ड ने श्री रामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को विभि‍न्न देयकों के रूप में 2 करोड़, 11 लाख, 33 हजार, 184 रुपए जमा करने का पत्र दिया था. पत्र के मिलते ही ट्रस्ट ने फौरन निर्धारित शुल्क बोर्ड को जमा किया. सभी तरह के जरूरी वेरिफि‍केशन के बाद प्राधि‍करण ने राम मंदिर के प्रस्तावित मानचित्र पर मुहर लगा दी. प्राधि‍करण से स्वीकृत नक्शे के मुताबिक, इसका कुल एरिया 2.74 लाख वर्ग किलोमीटर है. इसमें कवर्ड एरिया 12 हजार 879 वर्ग मीटर है.

प्राधि‍करण ने चंपत राय तो मानचित्र सौंपते हुए बिल्डिंग के निर्माण, प्रदूषण और पानी समेत अन्य निर्धारित मानकों के अनुसार कार्य करने को कहा है. ट्रस्ट ने शुरुआत में राम मंदिर के लिए स्वीकृत कुल 2.74 लाख वर्ग मीटर 3.6 प्रतिशत हिस्से पर निर्माण कार्य शुरू करने की तैयारी की है.

इस प्रकार अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए निर्धारित कानूनी प्रक्रिया की मंजूरी मिल गई है. अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर को प्रकृति के झंझावतों से बचाते हुए एक हजार साल तक सुरक्षि‍त रखने के लिए देश की प्रतिष्ठिए‍त संस्थाओं ने अपना शोध शुरू कर दिया है. पिछले महीने सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीबीआरआइ) रुड़की और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलाजी (आइआइटी) के विशेषज्ञों ने अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थल पर पहुंच कर जमीन की गुणवत्ता की जांच की थी.

चंपत राय बताते हैं, “जिस निर्धारित स्थान पर मंदिर बनना है वहां की 60 मीटर की गहराई तक सैंपल लिए गए हैं. सैंपलिंग का काम आइआइटी, चैन्नई कर रहा है जबकि दूसरा काम मंदिर के भवन को भूकंप रोधी बनाए रखने का है. इसके लिए सीबीआरआइ, रुड़की को जिम्मेदारी सौंपी गईं.”

इन संस्थाओं की प्रारंभि‍क रिपोर्ट के आधार पर अयोध्या में प्रस्तावित राम मंदिर की नींव का डिजायन तैयार किया गया है. इसके मुताबिक, जितने हिस्से में मंदिर बनेगा वहां करीब 12 सौ स्थानों पर 35 मीटर गहराई की ‘पैलिंग’ होगी. इन गड्ढों में मौरंग, गिट्टी और सीमेंट भरा जाएगा. ये मौरंग, गिट्टी और सीमेंट कहां से आएंगे? इसका निर्धारण आइआइटी, चैन्नई को करना है.

आइआइटी चैन्नई के विशेषज्ञों ने बुंदेलखंड और सोनभद्र के इलाके की कुल 800 गिट्टी मंगाई है जिसकी क्षमता लैब में जांची जाएगी. इसके अलावा बुंदेलखंड में केन और बेतवा नदी के किनारे मिलने वाली लाल मौरंग की 10 क्विंटल मात्रा आइआइटी, चैन्नई भेजी जाएगी.

चंपत राय बताते हैं, “अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर के निर्माण में बाजार में मिलने वाला सीमेंट उपयोग में नहीं लाया जाएगा. आइआइटी चैन्नई इस बारे में रिसर्च कर रहा है कि किन खनिजों को मिलाकर ऐसा सीमेंट तैयार किया जाए जिससे मंदिर का भवन एक हजार साल तक सुरक्षि‍त रह सके. ”

 

 

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