उत्तर प्रदेश में राजनीतिक जुलूस, प्रदर्शन, हड़ताल व बंद के दौरान सरकारी व निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले को अब क्षतिपूर्ति देनी ही होगी। इसके लिए राज्य सरकार रिटायर्ड जिला जज की अध्यक्षता में क्लेम ट्रिब्यूनल बनाएगी। इसके फैसले को किसी भी अन्य न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकेगी।
इतना ही नहीं, ट्रिब्यूनल को आरोपी की संपत्ति अटैच करने अधिकार होगा। साथ ही वह अधिकारियों को आरोपी का नाम, पता व फोटोग्राफ प्रचारित-प्रसारित करने का आदेश दे सकेगा कि आम लोग उसकी संपत्ति की खरीदारी न करें।
अध्यादेश के मुताबिक ट्रिब्यूनल में अध्यक्ष के अलावा एक सदस्य भी होगा। यह सहायक आयुक्त स्तर का अधिकारी होगा। ट्रिब्यूनल नुकसान के आकलन के लिए क्लेम कमिश्नर की तैनाती कर सकेगा। वह क्लेम कमिश्नर की मदद के लिए प्रत्येक जिले में एक-एक सर्वेयर भी नियुक्त कर सकता है, जो नुकसान के आकलन में तकनीकी विशेषज्ञ की भूमिका निभाएगा।
ट्रिब्यूनल को दीवानी न्यायालय का पूरा अधिकार होगा और यह भू-राजस्व की तरह क्लेम वसूली का आदेश दे सकेगा। सरकार की मानें तो इस अध्यादेश के कानून बनने से सार्वजनिक संपत्ति व निजी संपत्ति की बेहतर सुरक्षा हो सकेगी।
गौरतलब है कि प्रदेश में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान हिंसा फैलाने व संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों से शासनादेश के जरिये क्षतिपूर्ति के लिए सक्षम अधिकारी नामित एडीएम ने कार्रवाई की थी। इसे कोर्ट में चुनौती दी गई। इस पर कोर्ट ने कानून बनाए बिना कार्रवाई पर सवाल उठाया था।
इसके बाद राज्य विधि आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के दिए निर्देश के क्रम में यूपी प्रिवेंशन ऑफ डैमेज टू पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी के संबंध में विधेयक का ड्राफ्ट तैयार किया। ड्राफ्ट के अध्ययन के लिए शासन स्तर पर एक कमेटी गठित की गई। जिसने पुलिस महानिदेशक व अभियोजन निदेशालय के अधिकारियों से विचार-विमर्श कर द यूपी रिकवरी ऑफ डैमेज टू पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी अध्यादेश-2020 को अंतिम रूप दिया। कैबिनेट ने इसे शुक्रवार को मंजूरी दी। राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की मंजूरी के बाद इसे लागू किया जा सकेगा।
जुर्माना लगाने से मुआवजा देने तक का अधिकार
अध्यादेश में हड़ताल, बंद, दंगा, सार्वजनिक हंगामा, विरोध या इस संबंध में सार्वजनिक या निजी संपत्ति को नुकसान की रोकथाम, संपत्ति के संबंध में कुछ कृत्यों की सजा, जुर्माना, संपत्ति के दावों को लागू करने, न्यायाधिकरण को नुकसान की जांच और वहां से संबंधित मुआवजा देने का प्रावधान है।
राज्य सरकार संपत्ति के नुकसान की भरपाई के लिए जो अध्यादेश लाई है, उसे लेकर विधि विशेषज्ञों की राय अलग-अलग है। कानून के जानकार हालांकि सरकार की कार्रवाई को सही मानते हैं, पर विधिक मानकों पर नए कानून पर सवाल उठने से इनकार भी नहीं किया जा रहा। जिस मुद्दे के फंसने का अंदेशा जताया जा रहा है, वह यह है कि जब पोस्टर लगाने की कार्रवाई की गई तब इसे आधार देने के लिए कानून नहीं था। इसी मुद्दे को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी राज्य सरकार से सवाल किया और यह सवाल सुप्रीम कोर्ट में भी उठा। माना जा रहा है कि इसी सवाल की काट के लिए राज्य सरकार अध्यादेश लाई।
हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश डीपी सिंह का कहना है कि नया अध्यादेश संविधान के अनुच्छेद 14 पर खरा उतरना चाहिए। पार्लियामेंट व असेंबली को कानून लाने का अधिकार है। जस्टिस सिंह के अनुसार किसी भी अपराध में दंड अपराध के समय प्रभावी कानून के तहत निर्धारित होता है। नोटिफिकेशन जारी होने की तिथि से ही नए कानून को प्रभावी माना जाएगा। यहां देखना यह होगा कि कानून भूतलक्षी प्रभाव का है या आगे का।
उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अमरेंद्र कुमार बाजपेयी ने कहा कि सरकार का फैसला राष्ट्र व समाज हित में है। सरकार की मंशा पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। हालांकि जब उपद्रवियों के पोस्टर आदि लगाने की कार्रवाई की गई, तब सरकार के विधि परामर्शियों को इसकेलिए कानून की जरूरत को लेकर राय देनी चाहिए थी। वहीं, सर्वोच्च न्यायालय के एक वरिष्ठ अधिवक्ता का कहना है कि सरकार का अध्यादेश संविधान के चैप्टर तीन के अनुच्छेद 21 की मंशा के अनुकूल नहीं है। इसे लेकर सवाल उठ सकता है। प्रदेश के गृह सचिव भगवान स्वरूप ने कहा कि अभी अध्यादेश का प्रकाशन किया जाएगा। राज्यपाल के अनुमोदन के बाद नए कानून के प्रावधानों के अनुरूप कार्रवाई के निर्देश जारी किए जाएंगे।
ट्रिब्यूनल के समक्ष नुकसान के क्लेम व मुआवजे के लिए तीन महीने के भीतर 25 रुपये की कोर्ट फीस के साथ आवेदन करना होगा। अन्य सभी आवेदन में 50 रुपये की कोर्ट फीस व 100 रुपये प्रॉसेस फीस भी देनी होगी। संतोषजनक कारण होने पर ट्रिब्यूनल आवेदन के लिए 30 दिन की अवधि बढ़ा सकेगा। ट्रिब्यूनल प्रतिवादी (आरोपी) को क्लेम आवेदन एक नोटिस के साथ भेजेगा और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत पर दावे की सुनवाई करेगा। अगर आरोपी उपस्थित नहीं होता है तो वह एक पक्षीय आदेश भी दे सकेगा। ट्रिब्यूनल नुकसान का दोगुना से अधिक राशि मुआवजा नहीं तय करेगा, लेकिन मुआवजा संपत्ति के बाजार मूल्य से कम भी नहीं होगा। ट्रिब्यूनल में आए मामले को किसी आपराधिक वाद के अन्य अदालत में विचार होने के आधार पर नहीं रोका जा सकेगा।