गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों और अनुयायियों को मौखिक शिक्षा दी है। बाद में इसे उनके अनुयायियों द्वारा संकलित किया गया। बुद्ध अपने प्रवचन में मुख्य बातों पर ही जोर देते थे। तथागत कभी सुनने वाले के विचारों का विरोध न करते और न ही तर्क करते थे।
बल्कि उस व्यक्ति के विचारों को अपनाकर उससे प्रश्न करते ताकि सुनने वाला अपने विचार खोलकर सामने रख सके। इस तरह बुद्ध उस व्यक्ति को उसके विचार और दृष्टिकोण को सुधारने तथा सत्य को गहराई से समझने में सहायता करते थे।
एक बार एक शोकाकुल मा अपने मृत बच्चे के साथ बुद्ध के पास आईं। वह रो रहीं थीं। बुद्ध ने उनका दुख सुना। वह महिला चाहती थी, तथागत उस मृत बच्चे को जीवित कर दें। तब बुद्ध ने उस महिला से कहा आप ऐसे घर से सरसों के दाने लेकर आएं। जहां किसी की मृत्यु नहीं हुई हो।
वह महिला उस गांव में मौजूद हर घर में गई लेकिन ऐसा कोई भी घर नहीं था। जहां कभी किसी की मृत्यु नहीं हुई हो। वह तथागत की बात समझ गईं। और पुनः उनके पास पहुंची। इसके बाद उन्होंने अपने बच्चे का अंतिम संस्कार किया।
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