भारत में कोरोना से बिगड़ते हालातों का असर अब अफ्रीकी देशों पर भी दिखाई देने लगा है. कोरोनो की तबाही को नियंत्रित करने के लिए भारत ने वैक्सीन निर्यात पर रोक लगा दी है जिससे अफ्रीकी राष्ट्र संकट का सामना कर रहे हैं. केन्या के एक टॉप साइंटिस्ट ने इसे लेकर पूरी दुनिया को चेतावनी दे डाली है. उनका कहना है कि अफ्रीकी देशों में वैक्सीन की कमी से संक्रमण का खतरा अधिक होगा और पूरी दुनिया में कोरोना के सुपर वेरिएंट्स फैलेंगे.
केन्या अब पूरी तरह से ‘कोवैक्स’ पर निर्भर है. इस वैश्विक गठबंधन का उद्देश्य सभी देशों को समान वैक्सीन उपलब्ध करवाना है. कोवैक्स की वजह से ही अफ्रीकी देशों को कोविशील्ड के लाखों डोज मिले थे. ये एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का वही वर्जन है, जिसकी मैनुफैक्चरिंग भारत में सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (SII) ने की है. केन्या अब तक मिली लगभग सभी वैक्सीन का इस्तेमाल कर चुका है और भारत द्वारा वैक्सीन निर्यात पर रोक लगाए जाने के बाद यहां वैक्सीनेशन प्रोग्राम ठप होने की कगार पर पहुंच गया है.
वर्ल्ड डेटा के मुताबिक, केन्या की दो प्रतिशत से भी कम आबादी को अब तक कोविड-19 वैक्सीन का सिंगल डोज ही मिल पाया है. कोवैक्स के तहत जून में होने वाली डिलीवरी पर भी अब संदेह है. केन्या की आबादी बहुत कम है. इसके बावजूद दो फीसद से भी कम लोगों को वैक्सीन की सिंगल डोज मिलना चिंता का विषय है. हालांकि ये अफ्रीका की वैक्सीनेट हो चुकी आबादी से बहुत ज्यादा है. यानी अफ्रीका के बाकी देशों में हालात और भी ज्यादा बुरे हैं.
लैंसेट ग्रुप लैबोरेट्रीज के फाउंडिंग पार्टनर और पैथोलॉजिस्ट डॉ. अहमद कलेबी चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं कि इन हालातों में कुछ नहीं किया गया तो नतीजे बहुत बुरे होंगे. उन्होंने अमीर देशों से भी आग्रह किया कि वह अपनी वैक्सीनेशन रणनीतियों के ऊपर एक बार फिर से विचार करें, क्योंकि अब वे ज्यादा जोखिम वाले समूहों को वैक्सीनेट करने के लिए तेजी से आगे बढ़ रहे हैं जिसमें बच्चे और युवा भी शामिल हैं.
फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) की अनुमति मिलने के बाद यूएस सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (CDC) ने 12 से 15 साल के बच्चों को फाइजर-बायोटेक की वैक्सीन देने की सिफारिश की है. इस पर कलेबी कहते हैं कि मौजूदा हालातों को देखते हुए टीनेजर्स को वैक्सीनेट करना समझ से परे है. पूरी दुनिया में गंभीर रूप से बीमार पड़े लोग और सुपर स्प्रैडर्स को भी अभी तक वैक्सीन नहीं मिल पाई है.
डॉ. कलेबी ने चेतावनी देते हुए कहा, ‘वैक्सीन का ये संकट नए सुपर वैरिएंट्स के पैदा होने की बुनियाद है. जब तक हम सब लोग सुरक्षित नहीं हो जाते तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं रहने वाला है.’
इससे पहले WHO ने भी विकसित देशों के वैक्सीनेशन प्रोग्राम पर ये कहते हुए सवाल खड़े किए थे कि पूरी दुनिया नैतिकता की इस तबाही को देख रही है. WHO प्रमुख टेड्रस अधनोम ने बीते शुक्रवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में लोवर और लोवर-मिडिल इनकम देशों में वैक्सीन की सप्लाई का मुद्दा उठाया था. उन्होंने कहा था कि इन देशों में हेल्थ केयर वर्कर्स तक को वैक्सीनेट करने के लिए डोज उपलब्ध नहीं हैं.
ट्रेडस ने कहा था कि मैं समझता हूं कि क्यों कुछ देश अपने यहां बच्चों और युवाओं को वैक्सीनेट करवाना चाहते हैं. लेकिन मैं उनसे एक बार फिर इस पर विचार करने का आग्रह करता हूं और उम्मीद करता हूं कि वे ‘कोवैक्स’ को वैक्सीन डोनेट करने के बारे में सोचेंगे.
मार्च की शुरुआत में एक स्टडी सामने आई थी जिसमें बताया गया कि म्यूटेशन कोरोना को एक सुपर वेरिएंट में बदल देगा. इससे कोविड-19 के खिलाफ जंग और मुश्किल हो जाएगी. इस डर से अमेरिका, ब्रिटेन और स्वीडन जैसे देश सोशल डेस्टेंसिंग और वैक्सीन को लेकर काफी अलर्ट हो चुके थे. कोरोना के नए वेरिएंट्स से बचने के लिए इन देशों ने लोगों को तेजी से वैक्सीनेट करना शुरू कर दिया.