कोरोना के उपचार में आयुष चिकित्सा के प्रभावों के अब वैज्ञानिक सबूत भी सामने आने लगे है। नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान के डॉक्टरों ने फीफाट्रोल दवा के जरिए संक्रमित को न केवल स्वस्थ करने बल्कि छह दिन में ही वायरस को समाप्त करने सफलता पाने का दावा किया है।
फीफाट्रोल के साथ मरीज को आयुष क्वाथ, शेषमणि वटी और लक्ष्मीविलासा रस भी दिया गया था। भोपाल एम्स के डॉक्टरों ने भी अध्ययन के बाद उन्होंने दवा को आयुर्वेद एंटीबॉयोटिक का उपनाम दिया था।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ भी डेंगू में फीफीट्रोल को कारगर बता चुके हैं। बीएचयू के वरिष्ठ डॉ. केएन द्विवेदी फीफाट्रोल पर अध्ययन के लिए मंत्रालय की टास्क फोर्स को आवेदन कर चुके हैं।
आयुष एवं योग पर सवाल उठाते हुए वैज्ञानिक सबूत मांगे थे, जिसके बाद आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने कई अध्ययनों के बारे में जानकारी भी थी।इसी क्रम में आयुर्वेद के एम्स कहे जाने वाले एआईआईए संस्थान के डॉक्टरों ने भी अध्ययन प्रकाशित किया है।
रोग निदान एवं विकृति विज्ञान के डॉ. शिशिर कुमार मंडल का कहना है कि यह अध्ययन कोविड में आयुर्वेद चिकित्सा का सबूत है। मरीज को पूरी तरह से आयुर्वेद का उपचार दिया गया था। महज 6 दिन में ही न सिर्फ स्वस्थ्य हो गया बल्कि उसे माइल्ड से मॉडरेट स्थिति में जाने से भी रोका गया। उनका कहना है कि ज्यादा से ज्यादा मरीजों पर इस उपचार का अध्य्यन किया जाना चाहिए।
फीफाट्रोल में सुदर्शन घन वटी, संजीवनी वटी, गोदांती भस्म, त्रिभुवन कीर्ति रस व मृत्युंजय रस का मिश्रण है। इसके अलावा तुलसी, कुटकी, चिरायता, गुडुची, करंज, दारूहरिद्रा, अपामार्ग व मोथा भी है। वहीं आयुष क्वाथ में दालचीनी, तुलसी, काली मिर्च और सुंथी है।
पहले दिन से मरीज को 500-500 एमजी की फीफाट्रोल की दो डोज रोजाना दी गई। साथ ही आयुष क्वाथ, च्वयनप्रश, शेषमणि वटी और लक्ष्मीविलासा रस का सेवन कराया गया। भर्ती होने के ठीक छह दिन बाद मरीज की कोरोना निगेटिव रिपोर्ट मिलने के बाद उसे डिस्चार्ज किया गया।
जर्नल ऑफ आयुर्वेद केस रिपोर्ट के अनुसार 30 वर्षीय स्वास्थकर्मी को टाइफाइड के बाद कोरोना हुआ। संक्रमण की पुष्टि के दो दिन में ही बुखार, सिर दर्द, बदन दर्द, आखों में दर्द, स्वाद न आने के लक्षण मिले थे। मरीज को सरिता विहार स्थित संस्थान में भर्ती कराया गया था।
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