दिव्यांगों के लिए वरदान ब्रेल लिपि आज सभ्यता और संस्कृति को सुशोभित करने का नया आराम रच रही है। कहते हैं कि सोच और इरादों का विकास परंपराओं से होता है, हमारे पूर्वजों ने जो लिखा है और कहा है, वह कहीं न कहीं हमारे जीवन में सहायक बनता है। ऐसा कहा था महान वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने। उन्हीं की कही बातें का एक रूप हीरापुर स्थित प्रेरणा दिव्यांग स्कूल में दिखा। तृप्ति गायगवाल, उमेश्वरी निषाद समेत कई छात्राएं बाइबल और गीता से अध्यात्म को जान रही हैं।
आखिर हमारे देश में विभिन्न धर्म के लोग रहते हैं। जो देख सकते हैं, वे आसानी से रामायण, गीता, बाइबल पढ़ लेते हैं, लेकिन उनका क्या, जो दिव्यांग हैं। ऐसे में ब्रेल राजधानी के दिव्यांग बच्चों को सभ्यता और संस्कृति से रू-ब-रू करा रही है। आज हम बे्रल लिपि की बात इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि चार जनवरी को लुई ब्रेल का जन्म दिन मनाया जाएगा। उन्हीं की याद में चार जनवरी को लुई ब्रेल दिवस मनाया जाता है। लुई ने दिव्यांगों के लिए ऐसी लिपि दी, जिसे हजारों वर्ष तक उपयोग किया जाएगा।
सभी धर्मों का ज्ञान दे रही ब्रेल
ब्रेल लिपि दिव्यांग बच्चों को सभी धर्मों का ज्ञान दे रही है। चाहे गीता हो या रमायण वहीं बाइबल हो या फिर कुरान, सभी का ब्रेल में विकास किया जा चुका है। इसका फायदा हो रहा है दिव्यांग बच्चों को, जो रोजाना धर्में ग्रंथ में रची-बची सभ्यता और सभ्यता संस्कृति को जान और पहचान रहे हैं।
ऐसे लिखते हैं ब्रेल
ब्रेल को लिखने के लिए विशेष तरह के प्लास्टिक के छेद नुमा बॉक्स बना होता है। उसके अंदर कागज फंसा कर, ब्रेल पेन यानी छेद करने लिखा जाता है। खास बात ये होती है कि लिखा दाएं से बाएं जाता है, लेकिन पढ़ा बाएं से दाएं जाता है। उसके साथ ही पेज को पलट ही खुरदुरे भाग को पढ़ा जाता है।