अभी हाल ही में मशहूर लेखिका शोभा डे ने एक ‘चरबीदार पुलिसवाले’ की तस्वीर ट्विटर पर शेयर की थी. शोभा ने ट्विटर पर तस्वीर पोस्ट करते हुए लिखा था, ‘मुंबई में आज भारी पुलिस बंदोबस्त है.’लेकिन उनका यह मज़ाक उन पर उल्टा पड़ा गया था क्योंकि कुछ ही देर बाद मुंबई पुलिस ने शोभा को उनके ट्वीट का जवाब दिया.
मुंबई पुलिस ने अपने आधिकारिक ट्विटर पेज से ट्वीट किया था, ‘मिस डे, हमें भी मज़ाक पसंद है, लेकिन इस बार मज़ाक बिल्कुल अच्छा नहीं है. न तो यह यूनिफॉर्म हमारी है और न ही यह पुलिसवाला हमारा है. हम आप जैसे जिम्मेदार लोगों से और भी बेहतर की उम्मीद करते हैं.’
इस मामले में भले ही मुंबई पुलिस ने शोभा डे की बोलती बंद कर दी हो लेकिन भारत के कई राज्यों में पुलिस वालों के फिटनेस को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं.
इन्हीं राज्यों में से एक है पश्चिम बंगाल.
पश्चिम बंगाल पुलिस में भर्ती के लिए ज़रूरी है कि आप 800 मीटर की दूरी दौड़कर तीन मिनट में तय कर लें. मगर एक बार भर्ती हुई कि इन पुलिसकर्मियों का कुछ दूरी तक दौड़ना तक मुहाल हो जाता है.
कोलकाता में तैनात पुलिसकर्मी महादेव कहते हैं- नौकरी की व्यस्तताओं की वजह से कसरत करने का समय ही नहीं मिल पाता. इससे तोंद बढ़ गई है.
सहायक सब-इंस्पेक्टर से प्रमोशन पाकर इंस्पेक्टर बने गदाई हालदार बताते हैं, “15 साल पहले जब पुलिस में भर्ती हुआ था तो बैरक में नियमित रूप से सुबह-शाम कसरत करनी पड़ती थी. अब कई साल से यह छूट गया है. मोबाइल फ़ोन और आधुनिक तकनीक ने भागदौड़ घटा दी है. इसका असर सेहत पर नज़र आने लगा है.”
सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी दिनेश तरफ़दार इस बात को नहीं मानते. वह कहते हैं, “अब पुलिसवालों में फ़िट रहने की इच्छा ख़त्म हो गई है और वे आलसी हो गए हैं. नतीजतन, 40 की उम्र तक पहुँचते-पहुँचते उनका डील-डौल बदल जाता है. इस व्यवस्था में बदलाव जरूरी है.”
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पुलिस के नियम कहते हैं कि भर्ती के समय कर्मचारियों का क़द 160 से 167 सेमी, सीना 78 सेमी और वज़न क़द और उम्र के अनुपात में होना चाहिए. कुछ वर्गों और महिलाओं के लिए क़द में 5-7 सेमी तक की छूट भी है. भर्ती के समय पुरुषों को 800 मीटर की दौड़ 3 मिनट में और महिलाओं को 400 मीटर की दौड़ दो मिनट में पूरी करनी होती है.
तो बाद के सालों में ये फ़िटनेस हवा क्यों हो जाती है? एक ट्रैफ़िक पुलिसकर्मी के मुताबिक़ अब ऑटोमेटिक सिग्नल सिस्टम है और कर्मचारियों को ज़्यादा भागदौड़ नहीं करनी पड़ती. ट्रैफ़िक सार्जेंट ज़्यादातर मोटरसाइकिल पर चलते हैं. इसके अलावा सेना की तरह पुलिसवालों के लिए कोई नियमित ट्रेनिंग सिस्टम भी नहीं है.
हाल ही में डायबिटीज़ एसोसिएशन आफ़ इंडिया ने एसोसिशन आफ़ फ़िज़ीशियंस के जर्नल में छपी एक स्टडी में कहा था कि बढ़ती तोंद के चलते बंगाल में बड़ी तादाद में पुलिसकर्मी डाइबिटीज़ की चपेट में आ रहे हैं. 2200 पुलिसवालों की इस केस स्टडी के सहारे बताया गया था कि उनमें 12 फ़ीसदी डाइबिटीज़ की चपेट में हैं और 20 फ़ीसदी कभी भी इसकी चपेट में आ सकते हैं.
स्टडी के सदस्य रहे एंडोक्रिनोलाजिस्ट शुभंकर चौधरी ने बताया, “हमने 21 से 60 की उम्र के पुलिसवालों के स्वास्थ्य की जांच की थी. इनमें ज़्यादातर 35-36 साल के थे पर उनकी तोंद बढ़ी हुई थी. खानपान की गड़बड़ी और नियमित कसरत न करने से यह हालात बने हैं.”
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हृदयरोग विशेषज्ञ डॉ. अरिजीत रायचौधरी कहते हैं, “तोंद बढ़ने से दिल की बीमारियों का ख़तरा भी बढ़ता है. यह कई दूसरे रोगों का भी संकेत है.” तो क्या अब पुलिसवालों की तोंद घटाने का काम भी अदालत ही करेगी या पुलिस की मशीनरी इसके लिए कोई कारगर तरीक़ा अमल में लाएगी.
दरअसल, कलकत्ता हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा है कि सूबे के पुलिसवाले अगर मोटे हो रहे हैं तो वो इस तोंद के साथ अपराधियों का पीछा करके उन्हें कैसे पकड़ेंगे?
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