कोरोना वायरस से मरने के बाद शव को जलाया जाए या दफनाया जाए, इस बात को लेकर बहस हो रही है. कई लोगों का कहना है कि संक्रमण को रोकने के लिए शव को जलाना ज्यादा ठीक है लेकिन इसके कोई ठोस सबूत नहीं हैं कि शव दफनाने से संक्रमण फैल सकता है.
हाल ही में श्रीलंका में एक व्यक्ति की कोरोना वायरस से मौत हुई तो शव को जला दिया गया जबकि वह व्यक्ति मुसलमान था. श्रीलंका के मुस्लिम नेताओं ने इस पर आपत्ति भी जताई लेकिन अंत्येष्टि इस्लामिक तौर तरीके से नहीं हुई. श्रीलंका की सरकार ने कहा कि शव को जलाना संक्रमण को रोकने में मददगार साबित होगा.
कुछ हफ्ते पहले, मुंबई के बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) ने भी एक सर्कुलर जारी कर COVID-19 के संक्रमण से मरने वालों के शवों को जलाने की बात कही थी. हालांकि बाद में विवाद हुआ तो सर्कुलर वापस ले लिया गया. बाद में बड़े ग्राउंड में शवों को दफनाने की अनुमति दे दी गई.
क्यों लाया गया था ये सर्कुलर?
नगर निगम आयुक्त ने महामारी एक्ट (Epidemic Act, 1897) के तहत ये सर्कुलर जारी किया था. नगर आयुक्त का कहना था, ‘एक समुदाय के नेता ने मुझे बताया कि शवों को दफनाने की जगह बहुत घनी है और ऐसे में वहां से संक्रमण फैलने का खतरा हो सकता है. इसके बाद ये सर्कुलर जारी किया गया था.’
हिंदुजा अस्पताल में कोरोना वायरस से 85 वर्ष के एक सर्जन की मौत के बाद 27 मार्च को उनके परिवार ने स्टाफ की गैरमौजूदगी में उनके शरीर को दफना दिया था. ये रिपोर्ट आने के बाद बीएमसी को इस बात की चिंता थी कि अंतिम संस्कार के दौरान कोई सावधानी बरती गई थी या नहीं.
अब क्या व्यवस्था की गई है?
बीएमसी ने अब इलेक्ट्रिक या पाइप्ड नेचुरस गैस श्मशान की सिफारिश की है. सर्कुलर में कहा गया है कि शरीर को प्लास्टिक में पैक कर दफनाने में अभी भी संक्रमण का खतरा है क्योंकि प्लास्टिक को पिघलने में समय लगता है. सर्कुलर में कहा गया है कि किसी भी अंतिम संस्कार में पांच से अधिक लोगों को शामिल होने की अनुमति नहीं दी जाएगी. दूसरे देशों में शवों को दफनाने को लेकर कई तरह के दिशा-निर्देश तय किए गए हैं.
हालांकि, सर्कुलर में किसी बड़े मैदान में शवों को दफनाने की अनुमति है जिससे उसके आसपास के क्षेत्र में वायरस फैलने का खतरा ना हो. वैसे सर्कुलर में कब्रिस्तान के आकार को लेकर कोई स्पष्ट निर्देश नहीं दिए गए हैं. महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री ने कोरोना वायरस के मरीजों के शवों को लेकर केंद्र के दिशा-निर्देशों का पालन करने को कहा है.
केंद्र के दिशा-निर्देश क्या हैं?
स्वास्थ्य मंत्रालय के विस्तृत दिशा-निर्देश के अनुसार, COVID-19 मरीजों के शवों को जलाने और दफनाने दोनों की अनुमति है. सरकार की तरफ से ऐसा कुछ भी नहीं कहा गया है कि शवों को दफनाने से किसी भी तरह के संक्रमण के फैलने का खतरा है.
दिशा-निर्देशों के अनुसार, मृतक का शरीर लीक प्रूफ प्लास्टिक बैग में सील होना चाहिए. बैग की चेन खोलकर सिर्फ शव का चेहरा ही देखने की अनुमति है. शव को नहलाने, चूमने या गले लगाने की अनुमति नहीं है. संस्कार के दौरान परिवार के सदस्यों को धार्मिक पंक्तियां पढ़ने और पवित्र जल छिड़कने की अनुमति है, लेकिन किसी को भी शव को छूने की अनुमति नहीं है.
हालांकि, सर्कुलर में किसी बड़े मैदान में शवों को दफनाने की अनुमति है जिससे उसके आसपास के क्षेत्र में वायरस फैलने का खतरा ना हो. वैसे सर्कुलर में कब्रिस्तान के आकार को लेकर कोई स्पष्ट निर्देश नहीं दिए गए हैं. महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री ने कोरोना वायरस के मरीजों के शवों को लेकर केंद्र के दिशा-निर्देशों का पालन करने को कहा है.
कोरोना से संक्रमित शवों की ऑटोप्सी से बचना चाहिए क्योंकि ऑटोप्सी के दौरान COVID-19 मरीज के फेफड़ों से संक्रमण फैल सकता है. शव को बैग में डालने के बाद बैग को हाइपोक्लोराइट से सैनिटाइज करना चाहिए. इसके बाद बैग को मृतक के परिवार से मिले कपड़े से ढका जा सकता है.
कीटाणुरहित हो जाने के बाद प्लास्टिक में बंद शव को उठाने में कोई खतरा नहीं है. हालांकि, शव के नजदीक जाने वाले लोगों को व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण पहनने चाहिए.
क्या शव दफनाने से संक्रमण का खतरा होता है?
एचआईवी और SARS-CoV-2 जैसे रोगाणुओं से संक्रमित लोगों के शव जैव सुरक्षा स्तर II और III के अंतर्गत आते हैं. पूरी तरह से सील करके शव को दफनाना सुरक्षित माना जाता है. अगर शव का अंतिम संस्कार किया जाता है, तो इसकी राख से किसी तरह के संक्रमण का खतरा नहीं है. कोरोना से संक्रमित शव से इंफेक्शन फैलने का खतरा शवगृह में काम करने वालों, ऑटोप्सी करने वाले डॉक्टर्स और शव को उठाने वाले लोगों को ही है.
अगर सभी सावधानियों का पालन किया जाए तो शवों को दफनाने और दाह संस्कार करने दोनों ही प्रक्रिया ही सुरक्षित माना जाता है. अंतिम संस्कार के समय भीड़ नहीं इकट्ठी होना चाहिए क्योंकि परिवार के सदस्यों में संक्रमण का खतरा रहता है. मुंबई के केईएम अस्पताल में फोरेंसिक विभाग के प्रमुख डॉक्टर हरीश पाठक ने The Indian Express को बताया कि जितना जल्दी हो सके शव का अंतिम संस्कार कर देना चाहिए. अगर इसे शवगृह में रखा जाता है तो इसे 4-6 डिग्री सेल्सियस के बीच रखा जाना चाहिए.