फेक न्यूज यानी झूठी खबरें इन दिनों पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बनी हुई हैं। फेसबुक व अन्य सोशल मीडिया और मैसेजिंग एप पर फेक न्यूज शेयर करने के मामले सामने आते रहते हैं। हर ओर शेयर होती ऐसी झूठी खबरों को देखकर अक्सर मन में सवाल उठता है कि इन्हें शेयर करने और इनके झांसे में आने वाले कौन लोग होते हैं। अमेरिका में किए गए एक अध्ययन में इसका जवाब मिला है।
इसके मुताबिक, युवाओं की तुलना में बुजुर्ग लोग इन खबरों के झांसे में आकर इन्हें ज्यादा शेयर करते हैं। अमेरिका की न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी और प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अध्ययन को अंजाम दिया। अध्ययन में पाया गया कि अमेरिका में 2016 में हुए राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान 8.5 फीसद अमेरिकी नागरिकों ने फेसबुक पर फेक न्यूज के लिंक शेयर किए थे।
हालांकि, इस तरह की खबरों को शेयर करने वालों में उम्र का बड़ा अंतर देखने को मिला। इसके मुताबिक, 18 से 29 साल की उम्र के युवाओं में मात्र तीन फीसद ने ऐसी खबरों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर साझा किया। वहीं 65 साल से ज्यादा की उम्र के 11 फीसद लोगों ने इन्हें शेयर किया।
विचारधारा का कोई असर नहीं
अध्ययन में सबसे महत्वपूर्ण बात यह निकलकर आई कि फेक न्यूज से प्रभावित होकर उन्हें साझा करने वालों पर किसी विचारधारा की ओर झुकाव जैसी बातों का कोई प्रभाव नहीं था। उम्र के अतिरिक्त उनमें ऐसा कोई साझा कारण नहीं मिला, जिसके आधार पर वर्गीकरण करना संभव हो। शिक्षा के स्तर, आय और लिंग के आधार पर भी ऐसा कोई समूह निर्धारित नहीं किया जा सका।
रिपब्लिकन पार्टी के समर्थकों ने ज्यादा शेयर किए फेक न्यूज
अध्ययन के मुताबिक, अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी के समर्थकों ने डेमोक्रेट्स के मुकाबले में ज्यादा फेक न्यूज साझा किए। हालांकि अध्ययनकर्ता इसे निष्कर्ष नहीं मान रहे हैं। उनका कहना है कि 2016 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रंप के पक्ष में और डेमोक्रेट प्रत्याशी हिलेरी क्लिंटन के विपक्ष में हवा चल रही थी। ऐसे में स्वाभाविक रूप से इस तरह की फेक न्यूज ने लोगों को ज्यादा प्रभावित किया और रिपब्लिकन समर्थक ज्यादा झांसे में आए।
अध्ययन से होंगे कई फायदे
शोधकर्ताओं का कहना है कि अध्ययन के नतीजे अहम हैं। यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि बुजुर्ग लोग फेक न्यूज के झांसे में ज्यादा आते हैं। नतीजे से स्पष्ट है कि डिजिटल रूप से कम साक्षर होना ऐसी खबरों के झांसे में आने की बड़ी वजह है। लोगों को जागरूक करते हुए इससे निपटने में मदद मिल सकती है।