नई दिल्ली। पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त नसीम जैदी का कहना है कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) को लेकर पनपे विवाद के दौरान वह खुद के लिए नहीं, बल्कि निर्वाचन आयोग की विश्वसनीयता तथा छवि को लेकर चिंतित थे।मीडिया से साक्षात्कार के दौरान जैदी से जब पूछा गया कि विवाद के दौरान उन्हें दुख पहुंचा था, या उन्होंने उसे हंसी में टाल दिया था, तो उन्होंने कहा, “न तो मुझे गुस्सा आया और न ही खुश था। मैं आयोग की विश्वसनीयता को लेकर बेहद चिंतित था, जो वर्षो से बरकरार है।
मेरे दिमाग में बस यही बात चल रही थी कि आयोग की विश्वसनीयता को किस प्रकार अक्षुण्ण रखा जाए और संस्थान में लोगों के विश्वास को और कैसे बढ़ाया जाए। यह सवाल एक व्यक्ति के रूप में मुझसे संबंधित नहीं था।”
बुधवार को सेवानिवृत्त हुए जैदी ने कहा कि विवाद से बचा जा सकता था, क्योंकि ईवीएम लंबे समय से प्रयोग में है और कई विशेषज्ञ समितियों ने इसकी विश्वसनीयता की जांच की है।
उन्होंने कहा कि ‘अनर्गल आरोप लगाने’ के बजाय राजनीतिक दल ईवीएम से छेड़छाड़ के किसी मामले को सबूत और विश्वसनीय सूचना के साथ पेश कर सकते थे।
जैदी ने मुस्कुराते हुए कहा, “लेकिन हमारे पास ऐसा कोई सबूत नहीं आया। हम आज भी उसका इंतजार कर रहे हैं।” उन्होंने कहा कि आयोग ईवीएम की विश्वसनीयता को और बढ़ाने के लिए सुझावों तथा उपायों का स्वागत करने के लिए हर वक्त तैयार रहता है।
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा तथा मणिपुर में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद, जिसमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने उत्तर प्रदेश में प्रचंड जीत दर्ज की थी, कुछ विपक्षी पार्टियों ने ईवीएम की विश्वसनीयता पर संदेह जताया था। वहीं जैदी का कहना है कि हार और जीत अपनी लोकप्रियता और काम पर निर्भर होती है न कि ईवीएम पर।
आरोपों की शुरुआत बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने की थी, जिन्हें राज्य में करारी हार का सामना करना पड़ा था। वहीं, पंजाब में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (आप) ने यही मुद्दा उठाया।
निर्वाचन आयोग ने हालांकि हर बार आरोपों को सिरे से खारिज किया।
जून महीने में निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक पार्टियों को खुली चुनौती दी थी कि वे आएं और ईवीएम से छेड़छाड़ करके दिखाएं। चुनौती में केवल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) ने हिस्सा लेने की इच्छा जताई थी। निर्वाचन आयोग ने इस चुनौती के लिए कुछ शर्ते तय की थीं, जिसके बाद अधिकांश पार्टियों ने इससे खुद को दूर रखने का फैसला किया था।