वोट गिनने के तरीके पर चुनाव आयोग और सरकार आए आमने-सामने!

मतों की बूथवार गिनती की वर्तमान प्रणाली को लेकर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग के बीच मतभेद की स्थिति है। इकोनॉमिक टाइम्स की खबर के मुताबिक चुनाव आयोग इस व्यवस्था को वोटों की गिनती समूह में करने के नियम से बदलना चाहता है जिससे वोटरों की गोपनीयता बरकरार रखी जा सके, जिससे चुनाव के बाद राजनीतिक दल वोटरों को परेशान न कर सकें। वोट गिनने के तरीके पर चुनाव आयोग और सरकार आए आमने-सामने!
चुनाव आयोग ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वो मतगणना में बूथवार मतगणना के खिलाफ था और इस मामले में संशोधन करने के लिए केंद्र सरकार से कहा था। लेकिन केंद्र सरकार ने इस प्रस्ताव को ये कहकर अस्वीकार कर दिया कि वोटों की गिनती की वर्तमान व्यवस्था ज्यादा फायदेमंद है। 

जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए.एम खानविलकर और जस्टिस शांतनगौधर की पीठ के सामने चुनाव आयोग की ओर से एडवोकेट अशोक देसाई ने बात रखी। उन्होंने कहा कि मतगणना की वर्तमान प्रणाली से राजनीतिक पार्टियों को ये पता चल जाता है कि किस इलाके के वोटरों ने उन्हें वोट दिए हैं और किस इलाकों के नहीं। इससे वोटरों पर राजनीतिक पार्टियों द्वारा निशाना बनाए जाने का डर बना रहता है। 

केंद्र सरकार ने रखा अपना पक्ष

उन्होंने कहा कि वोटों की समूह में गिनती की व्यवस्था तब तक लागू नहीं हो सकती जब तक केंद्र सरकार इसके लिए संशोधन नहीं करती। उन्होंने कहा कि कुछ साल पहले ऐसा ही स्थिति देखी गई थी जब महाराष्ट्र के तत्कालीन उप-मुख्यमंत्री अजीत पवार ने बारामती गांव के लोगों को वोट न देने पर पानी की सप्लाई रोकने की चेतावनी दी थी।

केंद्र सरकार की तरफ से एडवोकेट नलिन चौहान ने पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि वर्तमान व्यवस्था से राजनीतिक पार्टियों को ये पता चलेगा कि उन्होंने किस इलाके में बेहतर प्रदर्शन किया है। जहां उनका बेहतर प्रदर्शन नहीं होगा वहां वो अच्छा प्रदर्शन करने के लिए मेहनत करेंगे। जिससे विकास कार्य में तेजी आएगी। उन्होंने कहा और जहां तक वोटरों को डराने या धमकाने की बात आती है। जागरुक मीडिया के दौर में लोगों को डराने-धमकाने का सवाल ही पैदा नहीं होता। 

हालांकि सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग की बात से संतुष्ट दिखी और कहा कि मतगणना की वर्तमान स्थिति में बदलाव होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस पर विचार करेगी कि निजता के अधिकार के तहत केंद्र सरकार को कानून में संशोधन का निर्देश दिया जा सकता है या नहीं। 

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