मकर संक्रांति के दिन ही भीष्म पितामह ने त्यागी थी देह, पढ़े पौराणिक कथा

हर साल मनाया जाने वाला मकर संक्रांति का पर्व इस बार 14 जनवरी को मनाया जाने वाला है। आपको बता दें कि इस दिन सूर्य देव राशि परिवर्तन करके मकर राशि में गोचर करने वाले हैं। ऐसे में ज्योतिष के अनुसार सूर्य का राशि परिवर्तन बहुत खास होता है। जी दरअसल सूर्य को सभी राशियों का राजा माना जाता है। वहीं मकर संक्रांति के दिन सूर्य के गोचर से जहां खरमास खत्म हो जाता है वहीं वसंत ऋतु के आगमन का भी संकेत मिलता है। आप सभी को बता दें कि मकर संक्रांति का अद्भुत जुड़ाव महाभारत काल से भी है। जी दरअसल 58 दिनों तक बाणों की शैया पर रहने के बाद भीष्म पितामह ने अपने प्राणों का त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया था। जरूर पढ़े पौराणिक कथा।

पौराणिक कथा- 18 दिन तक चले महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह ने 10 दिन तक कौरवों की ओर से युद्ध लड़ा। रणभूमि में पितामह के युद्ध कौशल से पांडव व्याकुल थे। बाद में पांडवों ने शिखंडी की मदद से भीष्म को धनुष छोड़ने पर मजबूर किया और फिर अर्जुन ने एक के बाद एक कई बाण मारकर उन्हें धरती पर गिरा दिया। चूंकि भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। इसलिए अर्जुन के बाणों से बुरी तरह चोट खाने के बावजूद वे जीवित रहे। भीष्म पितामह ने ये प्रण ले रखा था कि जब तक हस्तिनापुर सभी ओर से सुरक्षित नहीं हो जाता, वे प्राण नहीं देंगे। साथ ही पितामह ने अपने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तारायण होने का भी इंतेजार किया, क्योंकि इस दिन प्राण त्यागने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

वहीं भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए कहा है कि, ‘6 माह के शुभ काल में जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और धरती प्रकाशमयी होती है, उस समय शरीर त्यागने वाले व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता है। ऐसे लोग सीधे ब्रह्म को प्राप्त होते हैं, यानी उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि भीष्म पितामह ने शरीर त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने तक का इंतजार किया।’

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