भारत MTCR का पूर्ण सदस्य बना, चीन-पाकिस्तान पीछे

MTCR का पूर्ण सदस्य बना भारत, चीन-पाकिस्तान पीछे तीन दिनों पहले एनएसजी की सदस्यता पाने में भारत को मिली असफलता के बाद किसी बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्था में भारत को ये कामयाबी मिली। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा कि पिछले वर्ष इसके लिए अर्जी दी गई थी। सभी प्रक्रिया पूरी हो गई थी।

 पिछले साल भारत का इटली ने किया था विरोध

यूएस से न्यूक्लियर डील के बाद भारत एनएसजी औरMTCR का ग्रुप में एंट्री की कोशिश करता रहा है। ये ग्रुप न्यूक्लियर, बायोलॉजिकल और केमिकल वेपन्स को कंट्रोल करने से जुड़े हैं। इसी तरह, ऑस्ट्रेलिया ग्रुप केमिकल वेपन्स और वैसेनार अरेंजमेंट छोटे हथियारों वाला ग्रुप है। मरीन्स से जुड़े विवाद के चलते पिछले साल इटली ने भारत की एमटीसीआर में एंट्री का विरोध किया था। इटली के दो मरीन पर भारत के दो मछुआरों की हत्या का आरोप था। अब इन दोनों मरीन्स को इटली वापस भेजा जा चुका है। इसके बाद इटली भी भारत की इस ग्रुप में एंट्री को लेकर नर्म रुख अपनाया। इस महीने की शुरुआत में भारत हेग कोड ऑफ कंडक्ट को मानने के लिए तैयार हो गया था। ये बैलिस्टिक मिसाइलों के प्रसार को रोकने से जुड़ा ग्रुप है। कोड ऑफ कंडक्ट मानने के बाद ये तय हो गया था कि एमटीसीआर में भारत को एंट्री मिल जाएगी।

भारत को मिलेगा फायदा

MTCR में एंट्री के बाद भारत को रॉकेट सिस्टम, ड्रोन और इससे जुड़ी टेक्नोलॉजी हासिल करने में मदद मिलेगी। शुरुआत में अमेरिका से जनरल एटॉमिक्स कंपनी द्वारा बनाए गए प्रिडेटर ड्रोन्स और अनमैन्ड एरियल व्हीकल मिलने में मदद मिलेगी। इन्हीं ड्रोन्स ने अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ हमलों में अहम भूमिका निभाई थी। इन्हें जनरल एटॉमिक्स एमक्यू-1 प्रिडेटर भी कहा जाता है। इसे सबसे पहले यूएस एयरफोर्स और सीआईए ने यूज किया था। नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) की फौजों ने बोस्निया, सर्बिया, इराक वॉर, यमन, लीबियाई सिविल वॉर में भी इनका इस्तेमाल किया था। प्रिडेटर के अपडेटेड वर्जन में हेलफायर मिसाइल के साथ कई अन्य वेपन्स भी लोड होते हैं। प्रिडेटर में कैमरा और सेंसर्स भी लगे होते हैं जो इलाके की पूरी मैंपिंग में खासे मददगार होते हैं।

जानिए, क्या है एमटीसीआर

1987 में समूह सात देशों सहित 12 विकसित देशों ने मिलकर अाणविक हथियार से युक्त प्रक्षेपास्त्रों के प्रसार को रोकने के लिए एक समक्षौता किया था जिसे मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) कहते हैं।
अप्रैल 1987 में स्थापित स्वैच्छिक एमटीसीआर का उद्देश्य बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र तथा अन्य मानव रहित आपूर्ति प्रणालियों के विस्तार को सीमित करना है जिनका रसायनिक, जैविक और परमाणु हमलों में उपयोग किया जा सकता है। एमटीसीअार में शामिल होने के बाद भारत हाई-टेक मिसाइल का दूसरे देशों से बिना किसी अड़चन के एक्सपोर्ट कर सकता है और अमेरिका से ड्रोन भी खरीद सकता है और अपना मिसाइल किसी और देश को बेच सकता है।

सात बड़े देशों ने किया था एमटीसीआर का गठन

एमटीसीआर का गठन वर्ष 1997 में दुनिया के सात बड़े विकसित देशों ने किया था। बाद में 27 अन्य देश भी इसमें शामिल हुए हैं। वर्ष 2008 में इस समूह के लिए भारत के आवेदन पर इटली ने आपत्ति की थी। लेकिन इटली के नौसैनिकों को छोड़े जाने के बाद इस बार इटली ने कोई आपत्ति नहीं जताई।

हथियार निर्यातक देश बनेगा भारत

रूस की मदद से सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस बना चुका भारत इस समूह में शामिल होने के बाद पहली बार अहम हथियार निर्यातक देश बन सकेगा। हालांकि इसके बाद भारत अधिकतम 300 किमी मारक क्षमता वाली मिसाइल ही तैयार कर सकेगा। ताकि हथियारों की होड़ को रोका जा सके।

जानकारों के मुताबिक भारत एनएसजी और एमटीसीआर के अलावा वासेनार एरेंजमेंट और ऑस्ट्रेलिया समूह का भी हिस्सा बनने को उत्सुक है। लेकिन एमटीसीआर का सदस्य बनने से भारत के लिए एनएसजी की सदस्यता हासिल करने में आसानी होगी।

 

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