अलग-अलग फल देते हैं सूर्य देवता …

4th-Sunday-Fast-of-Lord-Sri-Suryanarayana_56ed4832b49c0एजेन्सी/श्री सूर्य देव हमारे नवग्रहों में प्रधान माने गए हैं। खगोलशास्त्र के अनुसार सभी ग्रह इनके चारों ओर परिक्रमा करते हैं। धरती पर जीवन की संभावना भी सूर्य देव के माध्यम से ही है। ऋतुओं का आगमन भी सूर्य देव से पृथ्वी की स्थिति से ही होता है। ज्योतिष शास्त्र में भी सूर्य देव का बेहद महत्वपूर्ण स्थान है। जन्म कुंडली में सूर्य देव प्रबलता प्रदान करते हैं। यदि सूर्य अच्छी स्थिति में है तो जातक बलवान, शूरवीर, तेजस्वी, कीर्तीवान, समृद्धशाली होता है। हालांकि विभिन्न भावों में सूर्य की स्थिति अलग अलग फल प्रदान करती है।

इस दौरान जब सूर्य प्रथम भाव में होता है तो उसके रक्त में कमी की संभावना होती है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति क्रोधी होता है। पेट में रोग और कब्ज की परेशानी भी होती है। नेत्र रोग, हृदय रोग, मानसिक अशांति, थकान और सर्दी गर्मी के साथ पित्त का प्रभाव भी होता है। यदि द्वितीय भाव में सूर्य हो तो धन की हानि होती है जातक के सुख में कमी होती है। उसे सिरदर्द आदि की परेशानी होती है।

तृतीय भाव में सूर्य होने से सूर्य के फल अच्छे होते हैं। सूर्य से सभी प्रकार के लाभ मिलते हैं। धन, पुत्र, दोस्त, उच्चाधिकारियों से अधिक लाभ भी मिलता है। आरोग्यता और प्रसन्नता मिलती है। 4थे भाव में जमीन संबंधी, माता से यात्रा से पत्नी से समस्या आती है रोग मानसिक अशांति और मानहानि के कष्ट होते हैं। 6ठे भाव में सूर्य अशुभ होता है। नवम भाव में बंधन होता है मन की चंचलता होती है। दशम भाव में सूर्य शुभ फल देता है। वह काम में आसानी देता है। सम्मान दिलवाता है। उच्च अधिकारियों से लाभ प्रदान करता है। 

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